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________________ वर धूपदह में धूप धरि दह, धूम करि सुदिगावली। भरपूर महकत जजों प्रभुपद, जले मोह महाबली।। अब द्रव्यक्षेतर काल भव अरु, भाव परिवर्तन मई। संसार पन विधि इमभिनन्दन, नाशिये जग के जई। ओं ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा । दारु फल अरु केसरी वर, रक्तकुसुम दशांगुली। भरिले विशाल सुथाल प्रभुपद, जजोंजोरि करांगुली।। अब द्रव्यक्षेतर काल भव अरु, भाव परिवर्तन मई। संसार पन विधि इमभिनन्दन, नाशिये जग के जई।। ओं ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वामीति स्वाहा । जल गन्ध अक्षत फूल चरुवर, दीप धूप फलौघ ले। शुभ अरघसों पदकमल पूजत, करमगण जासों जले।। अब द्रव्यक्षेतर काल भव अरु, भाव परिवर्तन मई। संसार पन विधि इमभिनन्दन, नाशिये जग के जई।। ओं ह्रीं श्री ऋषभनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अयम् निर्वपामीति स्वाहा । पंचकल्याणक गरथ स्थित महाराजा, वैसाख सित षष्ठी दिना कैसे। जिमि सीपी मधि मुक्ता, राजे अभिनन्दन प्रभु वैसे।। ओं ह्रीं वैशाखशुक्लाष्टम्यां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा । 282
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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