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________________ चतु-वक्त्र अंगुल-च्यारि, अन्तर भई धुनि सुनि हरषये।।5।। तरु अशोक त्रय-छत्र है, जगसार हो, चवसठि चँवर ढुरन्त। जोजन वाणी मागधी, जगसार हो, दुन्दुभि मधुर घुरन्त।। घुरन्त दुन्दभि सुमन वरपै, तुंग-आसन त्रय लसै। तम-पटल भामण्डल विध्वंसै कोटि-रवि की छवि नसै।। वसु प्रातिहारिज-सहित आरिज, देश के भवि बोधिही। सम्मेदगिरि समभाव प्रणये, भूरि जोग निरोधही।।6।। फागुन द्वादशि कृष्णही, जगसार हो, ध्यान शुकल-असि धार। हनि अघाति शिवपुर लयो, जगसार हो, सुख-अनन्त-भण्डार।। भण्डार सुख अविकार अवपु सु हीनवृद्ध नहीं कदा। त्रैलोक की तिरकाल परणति, ज्ञान-गर्भित है सदा।। तित जनम-मरण जरा न व्यापै, नांहि सेवक भूपही। चिद्रूप वसु-गुणमयी राजै, सदा एक सरूपही।।7। तुम गुण सुर-गुरु वरण, जगसार हो, जिह्वा सहस बनाय। तौऊ पार लहैं नहीं, जगसार हो, तो हम पै किम थाय।। किम थाय हमपै तुहे वरणन, देवगुरु से थकि रहे। हो कृपानाथ अनाथ के पति, इहैं भव दुख मैं सहे।। तुम तरण-तारण दुख-निवाण, तारि भवतें नाथ जी। रामचन्द्र शरणि निहारि आयो, जोरिके जुग हाथजी॥8॥ (दोहा) श्री मुनिसुव्रत देव की, विनती परम रसाल। जो पढसी सुनिसी सदा, पासी मोक्ष विशाल।।9॥ ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। ॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥ 241
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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