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________________ सित सालि-अखण्डं, दुरित-विहण्डं, सोम-समा मनहर ल्यावै। श्रीजिनपद आगें, पूज रचावें, तुरत अखैपद भवि पावै।। चम्पापुर थानं, शुभ-कल्यानं, वासुपूज्य जिनराज वरं। वसुविधि करि अरच, भव-दुख विरच, परचै सब सुख तार घरं।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।। सुरतरु के ल्यावें, चक्खि सुहावें, कुसुम-गन्ध दश-दिशि धावै। श्रीजिनवर अरचे शिवतिय परचे, मदनवान लहु नसि जावै।। चम्पापुर थानं, शुभ-कल्यानं, वासुपूज्य जिनराज वरं। वसुविधि करि अरच, भव-दुख विरचै, परचै सब सुख तार घरं।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4। चरु मिष्ट मनोहर, घेवर बावर, कनकथाल भर अति प्यारी। श्रीजिनवर आणु, पूज रचावें, हरहु वेदना दुखकारी।। चम्पापुर थानं, शुभ-कल्यानं, वासुपूज्य जिनराज वरं। वसुविधि करि अरच, भव-दुख विरच, परचै सब सुख तार घरं।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5। शुभ रतन-सुदीपक कनकरकाबी, ललि त-जोति धर प्रभु आगें। तम-मोह नसावै, अति सुख पावै, स्वपर लखै निज-गुण जागें।। चम्पापुर थानं, शुभ-कल्यानं, वासुपूज्य जिनराज वरं। वसुविधि करि अरच, भव-दुख विरचै, परचै सब सुख तार घरं।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6। 194
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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