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________________ धनि भई रसना आज मेरी, नाथ थुति तुम करत ही। धनि उभे पद तुम धाम आयो, सबै कारज सरल ही।।5।। निर-अम्बर सुन्दर घने, जगसार हो, दिग-अम्बर सुखदाय। निराभरण तन अति लसे, जगसार हो, को रवि को शसि काय।। ससि काय लांछित अभ्रसम, दिन हीन-वृद्धि सदा भमै। तुम चरण-नखदुति कोट रवि ना, और उपमा को पमै।। दरस-ज्ञान-चरित्र-भूषण, देखि शिव-तिय हो खुसी। आलिंग देने भई सनमुख, तुहे छवि लखि अति हसी।6।। निर-आयुध निरभै घने, जगसार हो, कोप तणों नहिं लेश। मोह-सुभट किम जय कियो, जगसार हो, जुत-परिवार महेश।। महेश हस्ती ध्यानपै संनाह, संजम अति छिमा। प्रपलाय असुरन संग लागौ, रही ना तसु की जमा।। जो फेरि निकट न आवही, जुत समर स्वपनन के विखें। हरि-हरादिक के हिये, बासी करो जग के अखें।।7॥ तुम गुण गुणपति मन धरे, जगसार हो, ये वच कहे न जाय। ज्यों तारे सब गगन के, जगसार हो, ये कर में न समाय।। कर में न तारे आय ज्यों, गुरु सहस-रसना धार ही। वरणन करे तो पार पावै, रह्यो पौरष हार ही।। मैं बुधि-बिना थुति करन उमग्यो, होय कैसें नाथजी। शशिबिम्ब जल में बाल बिनु बुध, गहै किम गहि हाथजी।।8।। मैं विनऊँ कर जोरिकें, जगसार हो तुम गुण को नहिं छेव। इस भव में बहु दुःख सहा, जगसार हो, देहु अचल-पद देव।। देव! अचल-पद देहु मोकू, शरण चरणन की गही। करि रामचन्द्र लहन्त, शिव जो गायसी सुर धरि सही।। इत होय मंगल नित नये घर, ऋद्धि-सिद्धि अनेकही। अज्ञान-तिमिर बिलाय ततछिन, हिये होय विवेकही।।9।। 179
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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