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________________ हरि गिरिवर पर अभिषेक कीन, झट तांडव निरत अरंभ दीन। बाजन बाजत अनहद अपार, को पार लहत वरणत अवार।।6।। दृमदृम दृमदृम दृम दृम मृदंग, घनन नननन घण्टा अभंग। छमछम छमछम छम छुद्र घण्ट, टमटम टमटम टंकोर तंट।।7।। झननन झननन नूपुर झंकोर, तननन तननन नन तान शोर। सननन नननन गगन मांहिं, फिरि फिरि फिरि फिरि फिरिकी लहांहि।।8।। ताथेइ थेइ थेइ थेइ धरत पाव, चटपट अटपट झट त्रिदशराव। करके सहस्र करको पसार, बहुभांति दिखावत भाव प्यार।।9।। निज-भगति प्रगट जित करत इन्द्र, ताकों क्या कहिं सकि है कविन्द्र। जहँ रंगभूमि गिरि राज पर्म, अरु सभा ईस तुम देव शर्म।।10। अरु नाचत मघवा भगति रूप, बाजे किन्नर बज्जत अनूप। सो देखत ही छवि बनत वृन्द, मुखसों कैसे वरनै अमन्द।।11।। धन घडी सोय धन देव आप, धन तीर्थंकर प्रकति प्रताप। हम तुमको देखत नयन-द्वार, मनु आज भये भवसिन्धु पार।।12।। पुनि पिता सौंपि हरि स्वर्गजाय, तुम सुखसमाज भोग्यौ जिनाय। फिर तप धरि केवलज्ञान पाय, धरमोपदेश दे शिव सिधाय।।13।। __ हम सरणागत आये अबार, हे कृपासिन्धु गुण-अमलधार। मो मनमें तिष्ठहु सदाकाल, जबलो न लहों शिवपुर रसाल।।14।। __ निरवाण-थान सम्मेद जाय वृन्दावन वंदत शीस-नाय। तु ही सब दुख-दंद-हरण, तातें पकरी यह चरण-शरण।।15। घतानंद जय-जय सुखसागर, त्रिभुवन-आगर, सुजस-उजागर, पार्श्वपती। वृन्दावन ध्यावत, पूज रचावत, शिवथल पावत शर्म अती।।16।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। पारसनाथ अनाथनिके हित, दारिदगिरिकों वज्रसमान। सुखसागर-वर्द्धन को शशिसम, दव-कषायको मेघमहान।। 126
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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