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________________ श्री अजितनाथ पूजा (रचयिता - वृन्दावनदास) त्याग वैजयन्त सार, सार धर्म के अधार। जन्म-धार धीर नम्र, सुष्टु कौशलापुरी॥ अष्ट दुष्ट नष्टकार, मातु वैजयाकुमार। आयु लक्षपूर्व, दक्ष है बहत्तरै पुरी॥ ते जिनेश श्री महेश, शत्रु के निकंदनेश। अत्र हेरिये सुदृष्टि, भक्त पै कृपा पुरी।। आय तिष्ठ इष्टदेव, मैं करों पदाब्जसेव। परम शर्मदाय पाय, आय शर्न आपुरी।। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिन ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् (आह्वाननम्)। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिन ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः (संस्थापनम्)। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिन! अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् (सन्निधिकरणम्)। अष्टक गंगाहृद-पानी निर्मल आनी, सौरभ सानी सीतानी। तसु धारत धारा तृषा-निवारा, शांतागारा सुखदानी॥ श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेश। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं।। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। शुचि चंदन-बावन ताप-मिटावन, सौरभ-पावन घसि ल्यायो। तुम भव-तप-भंजन हो शिवरंजन, पूजन-रंजन मैं आयो।। श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। सित खंड-विवर्जित निशिपति-तर्जित, पुंज-विधर्जित तंदुल को। भव-भाव-निखर्जित शिवपद-सर्जित, आनंदभर्जित दंदल को। श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेश।। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ 12
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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