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________________ प्रकोणक-पुस्तकमाला " उमास्वामि-श्रावकाचार" भी कोई ग्रन्थ है इतना परिचय मिलते ही पाठकोंके हृदयोंमें स्वभावसे ही यह प्रश्न उत्पन्न होना संभव है कि, क्या उमास्वामी महागजने कोई प्रथक् ' श्रावकाचार' भी बनाया है ? और यह श्रावकाचार, जिमके साथमें उनके नामका सम्बन्ध है, क्या वास्तवमें उन्हीं उमास्वामी महाराजका बनाया हुआ है जिन्होंने कि ' तन्वार्थ मूत्र' की रचना की है ? अथवा इसका बनाने वाला कोई दूमग ही व्यक्ति है? जिस समय मबसे पहले मुझे इस ग्रन्थके शुभ नामका परिचय मिला था, उस समय मेरे हृदय में भी ऐसे ही विचार उत्पन्न हुए थे। मेरी बहुत दिनांसे इस ग्रन्थके देखनेकी इच्छा थी। परन्तु ग्रन्थ न मिलनेके कारण वह अभीतक पूरी न हो सकी थी। हालमें श्रीमान् माहू जुगमं. दरदासजी रईम नजीबाबादकी कृपासे मुझे ग्रन्थका दर्शनसौभाग्य प्राप्त हुआ है, जिमके लिए मैं उनका हृदयस अाभार मानता है और व मर विशेष धन्यवादके पात्र हैं। इस ग्रन्थपर हिन्दी भापाकी एक टीका भी मिलता है. जिमको किमी 'हलायुध' नामके पंडितने बनाया है । हलायुधजी कब और कहाँ पर हुए और उन्होंने किम सन्-सम्बत्म इम भाषा टोकाको बनाया इसका कुछ भी पता उक्त टीकासे नहीं लगता। हलायुधजीने इस विश्यमें, अपना जो कुछ परिचय दिया है उसका एक मात्र परिचायक, ग्रन्थक अन्त में दिया हुअा, यह पद्य है: चंद्रवाड कुलगोत्र सुजानि । नाम हलायुध लोक बखानि । तानैं रचि भाषा यह सार । उमास्वामिको मूल सुसार ॥" इस ग्रन्थके श्लोक ० ४०१ की टीका, 'दुःश्रुति' नामकै अनर्थदंडका वर्णन करते हुए, हलायुधजीने मोक्षमार्गप्रकाश, ज्ञानानंदनिभरनिजरसपूरितश्रावकाचार, सुदृष्ट्रितरंगिणी, उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला, रत्नकरंडश्रावकाचारकी पं० सदासुखजीकृत भाषणवचनिका और विद्वज्जनबोधकको पूर्वानुसाररहित, निर्मल और कपोलकल्पित बतलाया है । साथ ही, यह भी लिखा है कि " इन शास्त्रों में
SR No.009242
Book TitleUmaswami Shravakachar Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1944
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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