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________________ वीतरागसे प्रार्थना क्यों ? वे योगबलसे आठो पापमलोको दूरकरके संसारमे न पाये जाने वाले ऐसे परमसौख्यको प्राप्त हुए सिद्धात्माओ का स्मरण करते हुए अपने लिये तद्रूप होने की स्पष्ट भावना भी करते है, जो कि वीतरागदेवकी पूजा-उपासनाका सञ्चा रूप है - दुरितमलकलंकमष्टकं निरुपमयोगबलेन निर्दहन् । अभवदभव-सौख्यवान् भवान्भरतु ममाऽपि भवोपशान्तये॥ म्वामी समन्तभद्रके इन सब विचारोसे यह भले प्रकार स्पष्ट होजाता है कि वीतरागदेवकी उपासना क्यो की जाती है और उसका करना कितना अधिक आवश्यक है। वीतरागसे प्रार्थना क्यों ? वीतरागकी पूजाके प्रतिष्ठित होजाने पर अब यह प्रश्न पैदा होता है कि जब वीतराग अर्हन्तदेव परम उदासीन एवं कृतकृत्य होनेसे कुछ करते-धरते नहीं तब पूजा-उपासनादिके अवसरोंपर उनसे बहुधा प्रार्थनाएँ क्यो कीजाती है और क्यों उनमें व्यर्थ ही कतृत्व-विषयका आरोप किया जाता है ?—जिसे स्वामी समन्तभद्र जैसे महान् आचार्योंने भी अपनाया है। यह प्रश्न बड़ा ही सुन्दर है और सभीके लिये इसका उत्तर वांछनीय एवं जाननेके योग्य है । अतः इसीके समाधानका यहाँ प्रयत्न किया जाता है । ____ सबसे पहली बात इस विषयमे यह जान लेनेकी है कि इच्छापूर्वक अथवा बुद्धिपूर्वक किसी कामको करनेवाला ही उसका कर्ता नहीं होता बल्कि अनिच्छापूर्वक अथवा अवुद्धिपूर्वक कार्यका करनेवाला भी कर्ता होता है । वह भी कार्यका कर्ता होता है
SR No.009240
Book TitleSamantbhadra Vichar Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1954
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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