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________________ १३ समाज-संगठन परन्तु गृहस्थाश्रम ब्यवस्था ठीक न होने से--समाज के अव्यवस्थित और निर्बल होने से यह सब कुछ भी नहीं हो सकता। इस लिए अंतरंग और वहिरंग दोनों दृष्टियों से समाज-संगठन की बहुत बड़ी जरुरत है। विवाह भी इसी खास उद देश्य को लेकर होना चाहिये और उसको पूरा करने के लिए प्रत्येक स्त्री पुरुष को उन दस कर्तव्यों का पूरी तार से पालन करना चाहिए जो कुटुम्बों को सुव्यवस्थित बनाने के लिये बतलाए गए हैं, और जिन पर समाज का संगठन अवलम्बित है। सिद्धि के लिये जरूरत समाज संगठन को पूरी तौर से सिद्ध करने के लिए और गृहस्थाश्रम का भार समुचित रीति से उठाने के लिए इस बात की बहुत बड़ी ज़रूरत है कि स्त्री और पुरुष दोनों ही योग्य हों, समर्थ हों, व्युत्पन्न हों, युवावस्था को प्राप्त हों, समाज हित की दृष्टि रखते हों और संगठन की जरूरत को भले प्रकार समझते हों। बाल्यावस्था से ही उनके शरीर का संगठन अच्छी रीति पर हुआ हो, वे खोटे संस्कारों से दूर रक्खे गए हों और उनकी शिक्षा दीक्षा का योग्य प्रबन्ध किया गया हो। साथ ही विवाह-संस्कार होने तक उन्होंने पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन किया हो और लौकिक तथा पारमार्थिक ग्रन्थों का अध्ययन करके उनमें दक्षता प्राप्त की हो अच्छी लियाकत हासिल की हो । बिना इन सब बातों की पूर्ति हुए समाज का यथेष्ट संगठन पूरे तौर से नहीं बन सकता, न गृहस्थाश्रम का भार समुचित रीति से उठाया जा सकता है और न
SR No.009239
Book TitleSamaj Sangathan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1937
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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