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________________ ३४ अनेकान्त-रस-जहरी दिलवाई जाती हैं और जब तक श्राजीविकाका कोई समुचित प्रबन्ध नहीं बैठता तब तक उनके भोजनादिकमें कुछ सहायता भी पहुँचाई जाती है । इससे कितने ही कुटुम्बोंकी आकुलवा मिटकर उन्हें अभयदान मिल रहा है । (४) चौथे सज्जन गवर्नमेंटके पेंशनर बाबू सेवाराम हैं, जिन्होंने गवर्नमेंटके साथ अपनी पेंशनका दस हजार नकदमें समझौता कर लिया हैं और उस सारी रकमको उन समाजसेवकोंकी भोजनव्यवस्थाके लिये दान कर दिया है जो निःस्वार्थभावसे समाजसेवाके लिये अपनेको अर्पित कर देना चाहते हैं परन्तु इतने साधन-सम्पन्न नहीं हैं कि उस दशामें भोजनादिकका खर्च स्वयं उठा सकें। इससे समाजमें निःस्वार्थ सेवकोंकी वृद्धि होगी और उससे कितना ही सेवा एवं लोकहितका कार्य सहज सम्पन्न हो सकेगा। बाबू सेवारामजीने स्वयं अपनेको भी समाजसेवाके लिये अर्पित कर दिया है और अपने दानद्रव्यके सदुपयोगकी व्यवस्थामें लगे हुए हैं। ___ अब बतलाओ दस-दस हजारके इन चारों दानियों में से क्या कोई दानी ऐसा है जिसे तुम पाँच-पाँच लाखके उक्त चारों दानियोंमेंसे किसीसे भी बड़ा कह सको ? यदि है तो कौन-सा है और वह किससे बड़ा है ? विद्यार्थी-मुझे तो ये दस-दस हजारके चारों ही दानी उन पाँच-पाँच लाखके प्रत्येक दानीसे बड़े दानी मालूम होते हैं। अध्यापक-कैसे ? जरा समझाकर बतलाओ? विद्यार्थी-पाँच लाखके प्रथम दानी सेठ डालचन्दने जो द्रव्य दान किया है वह उनका अपना द्रव्य नहीं है, वह वह द्रव्य है जो प्राहकोंसे मुनाफेके अतिरिक्त धर्मादाके रूपमें लिया गया है, न कि वह द्रव्य जो अपने मुनाफेमेंसे दानके लिये निकाला गया हो । और इस लिये उसमें सैकड़ों व्यक्तियोंका दानद्रब्य शामिल
SR No.009236
Book TitleAnekant Ras Lahari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1950
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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