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________________ १६४] [ प्रतिक्रमण - आवश्यक बीजाना निमित्त थई शकीए एम जे माने तेने मिथ्या विकल्पनी जाळ कदी तूटे नहि अने आत्मानुं लक्ष थाय नहि । ते विकल्पजाळ तोडवानो उपाय आ श्लोकमां दर्शाव्यो छे । पोते स्वआत्माने बधाथी भिन्न अवलोकवो; एम आत्मावलोकन करतां पर अने पुण्य प्रत्येनो विकल्प तूटी जाय छे। पोतानी अवस्थामा थतां पुण्यपापरूप विकार आत्मानुं स्वरूप नथी तो शरीर वगेरे जे प्रत्यक्ष जुदां छे ते आत्माना कइ रीते थइ शके ? न ज थइ शके । माटे परथी अने विकारथी भिन्न ( एवा) पोताना सिद्ध समान परमात्मतत्त्वमां लीन थवानो अभ्यास करवो । ए अभ्यासवडे संसाररूप वनमां रखडावनार विकल्प जाळनो नाश थाय छे । २६ । पुण्य-पाप अनुसार संयोगनो संबंध थाय छे एम कहे छे : स्वयं कृतं कर्म यदात्मना पुरा, फलं तदीयं लभते शुभाशुभम् । परेण दत्तं यदि लभते स्फुटं, स्वयं कृतं कर्म निरर्थकं तदा ।। ३० ।। अन्वयार्थ : [पुरा ] पूर्वे [ यत् ] जे [ कर्म ] कर्म [ आत्मना स्वयं ] स्वयं आत्मा वडे [कृतं ] करायेल होय [ तदीयं ] तेनुं ज [ शुभअशुभम् ] शुभ-अशुभ [ फलं ] फल [ लभते ] ते ( आत्मा ) पामे छे । [ यदि ] जो [ परेण दत्तं ] पारकाए आपेलुं ( शुभाशुभ फळ ) [ लभते ] आत्मा पामे [ तदा] तो [ स्वयं कृत ] पोते ज करेलुं [कर्म] कर्म [ निरर्थकम् ] व्यर्थ जाय (ए) [ स्फुटम् ] प्रगट छे । ३० । विशेषार्थ १. आ श्लोकमां कह्युं छे के : - चेतन के अचेतन कोई पण पर पदार्थो आत्माने सुख - दुःख आपी शकता नथी । माटे परथी मने लाभ - नुकसान थाय ए मान्यता एकदम छोडी देवी। आत्माने जे कांई शुभाशुभ संयोग-वियोगनो संबंध थाय छे ते, पोते करेला
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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