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________________ १५६] [प्रतिक्रमण-आवश्यक थयेल छ-निर्माण थयेल छे [यतः] केमके [निरस्त अक्षकषायविद्विषः] भावइन्द्रिय, कषाय, द्वेष वगेरे नाश कर्यां छे (जेणे एवो) [सुनिर्मलः] सुनिर्मळ [आत्मा] आत्मा [एव] ज (आसन) छे (एम) [ सुधीभिः] सम्यग्ज्ञानीओद्वारा [मतः] मान्य थयेल छ । विशेषार्थ १. आ श्लोकमां सामायिकनुं स्वरूप दर्शाव्युं छे। सम+अय+ इक-सामायिक एटले के जेना वडे आत्मामा रागद्वेषरहित समभावनो लाभ थाय एवो शुद्ध भाव। जे जीवे सम्यग्दर्शन न प्राप्त कर्यु होय ते जीवने आत्माना शुद्ध स्वरूपनी खबर नहि होवाथी ते शुद्ध भावनी प्राप्ति करी शके नहि एटले के तेने सामायिक होय नहि। २. संस्तर=आसन, कटासन, पाथरपुं। बाह्य वस्तुओ आत्मानुं आसन होई शके नहि, पण आत्मामां स्थिरता प्राप्त करवी ए ज आत्मानुं साचुं आसन-कटासन-पाथरपुं छे एम अहीं कह्यु छ। ३. 'कषाय' नो सामान्य अर्थ मिथ्यात्व अने रागद्वेष थाय छ । घणा जीवो मात्र राग-द्वेषने ज कषाय समझे छे पण ते बराबर नथी। जीव ज्यारे सम्यक्त्व प्रकट करी मिथ्यात्व टाळे छे त्यारे अनंत संसारना कारणरूप अनंतानुबंधी कषाय अर्थात् परवस्तुथी लाभ-नुकसान थाय एवी मान्यतापूर्वक थतां क्रोध, मान, माया, लोभ टळे छे। तेथी ज्यारे सरागसम्यग्दृष्टि जीवो संबंधी 'कषाय' वापरवामां आवे त्यारे ते जीवने चारित्रना दोषथी थता राग-द्वेष छे एम समझj । ____४. अक्ष इन्द्रिय; इन्द्रियना बे प्रकार छ। एक द्रव्येन्द्रिय अने बीजी भावेन्द्रिय। तेमां द्रव्येन्द्रियना बे प्रकार छ। १. पुद्गल (जड) इन्द्रिय, २. चेतन द्रव्येन्द्रिय। पुद्गल (जड) इन्द्रिय छे ते तो.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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