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________________ १४०] [प्रतिक्रमण-आवश्यक पीडाया होय [तदा] तो [तत् ] ते [दुःअनुष्ठितं] दुष्कृत्य [मिथ्या] मिथ्या [ अस्तु] हो-थाओ। विशेषार्थ १. आ श्लोकमां 'प्रमादत :-प्रमादथी शब्द घणो उपयोगी छे; केम के प्रमाद ज भावहिंसा छे अने भावहिंसा ए ज दोष छ। परजीवनुं शरीर छूटे के न छूटे, तेमना कटका थाय के न थाय ते आ जीवने आधीन नथी। आ जीवने आधीन पोताना भावों छ। पोताना भावमां प्रमाद थाय ते ज पोतानुं भावमरण होवाथी हिंसा छे अने ते दुष्कृत्य होवाथी ते मिथ्या थाओ एवी भावना करी छ। २. पर जीवनुं जीवन के मरण तेना आयुष्यने आधीन छे अने तेना आयुष्य प्रमाणे ज जीव- जीवन-मरण थाय छे; माटे पर जीवना जीवन के मरण, सुख के दुःख वगेरे आ जीवने बंधना कारण नथी, परंतु पोताना विकारी भाव ज बंधनुं कारण छे। ३. श्री जिनेन्द्रदेवे प्ररूपेल भावहिंसान स्वरूप ज खरी हिंसा छे लोको जेने हिंसा कहे छे ते हिंसानु खरुं स्वरूप नथी। जीव पोताना भावमा प्रमाद सेवे छे ते ज हिंसा छ। जीवनी प्रमाद दशानुं निमित्त पामीने बीजा जीवोने दुःख थाय छे अने तेमना शरीरनो वियोग थाय छे ते द्रव्यहिंसा छे; बंधनुं कारण भाव हिंसा ज छे, द्रव्यहिंसा नथी। भाव हिंसा वखते द्रव्यहिंसा थाय तो तेने निमित्त कारण कहेवाय। ४. जे जीव आत्मानुं शुद्ध स्वरूप समझे ते ज दुष्कृत्य शुं छे ते समझी शके ।५।
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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