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________________ प्रतिक्रमण - आवश्यक ] [१३५ ज छे तेथी तेने म्यानमांथी जुदी पाडी शकाय छे, तेम आत्मा शरीरथी जुदो होवाथी आत्माना ज्ञानबळ वडे बन्नेनुं स्वरूप जाणीने जीवने शरीरथी जुदो करी शकाय छे; अहीं ते ज्ञानबल प्रगट करवानी भावना छे । २. शरीर अनंत पुद्गल परमाणुओनो पिंड छे, ते अचेतन छे; आत्मा तेनुं कांई करी शके नहि; जीव अने शरीर तद्दन जुदां पदार्थो छे एम जे न समझे तेने धर्मनी शरुआत थइ शके नहि द्रव्ये, क्षेत्रे, काळे अने भावे जुदां पदार्थो, एक-बीजानुं कांइ करी शके नहि, शरीरनुं हुं काई करी शकुं के शरीरनी क्रिया करवाथी सामायिक वगेरे थाय एम जे माने छे तेणे जीवने अने शरीरने जुदां ज मान्या नथी; तेथी ते जीवने धर्म के सामायिक होई शके नहि अने तेने जीव अने शरीरनी विभिन्नता कदी थाय नहि । शरीरनो दरेक रजकण स्वतंत्र द्रव्य छे अने जीव पण स्वतंत्र द्रव्य छे तेथी जीव शरीरनुं कांई करी शके नहि, रजकणो जीवनुं कांई करी शके नहि अने एक रजकण बीजा रजकणनुं कांइ करी शके नहि; कोइ पण द्रव्य अन्य द्रव्यने लाभनुकसान करी शकतुं नथी । ३. वाटे जता जीवो सिवायना दरेक संसारी जीवने मुख्यपणे त्रण शरीर होय छे; मनुष्योने कार्मण, तैजस अने औदारिकए ऋण शरीर होय छे, कोइ लब्धिधारी मुनिने चोथुं आहारक शरीर होय छे । आ शरीरोमांथी कोइ पण शरीर जीवने कांइ लाभ के नुकसान करतुं ज नथी; केमके ते जीवथी जुदुं ज द्रव्य छे; आवुं साचुं ज्ञान प्रथम करवानी जरूर छे । आवुं ज्ञान कर्या वगर जीवनो पुरुषार्थ कदी पोताना तरफ वळे ज नहि अने पर संयोग तरफ ज वलण रह्या करे; तेथी तेने आत्मभावना जागे नहि ।
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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