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________________ १३२] [प्रतिक्रमण-आवश्यक धारण करी शकता नथी त्यारे तेओ आ श्लोकमां कहेल चार प्रकारनी शुभ भावना भावे छे। ते समझे छे के आ भावनामां जे शुभ राग छे ते धर्म नथी पण दोष छे ने ते बंधनुं कारण छे; पण ते ज समये सम्यग्दर्शन-ज्ञाननी जे दृढता थाय छे, अशुभ राग थतो नथी अने शुभ रागना स्वामीत्वनो नकार वर्ते छे ते धर्म छे। ३. मैत्रीनो अर्थ निर्वैरबुद्धि छे। आ भावना पोताना हित माटे छे केमके ते वडे पोतानो तीव्र कषाय टळे छे। कोइ पण प्रत्ये वैरभाव राखवो ते पोतानुं ज अहित छ। एक जीव, पर जीवनुं हित के अहित करी शकतो ज नथी ए लक्षमा राख, अने तेथी एक जीव, बीजा जीवनो मित्र थइ शकतो नथी, पण निर्वैरबुद्धि राखी शके छे; माटे मैत्रीनो अर्थ निर्वैरबुद्धि समझवो। ४. गुणी जीवो प्रत्ये प्रमोदभाव-सम्यगदर्शन-ज्ञान-चारित्र धारण करनारा साचा गुणीजन छे। सम्यग्दर्शन जेने न होय ते साचा गुणी नथी; आत्मज्ञानी पुरुषो ज खरा गुणी छे। बाह्य त्याग होय पण आत्मज्ञानरूप अंतर्भेद न होय तो तेवा जीवो गुणी नथी। धर्ममां व्यक्ति-पूजाने स्थान नथी पण गुण-पूजाने ज स्थान छे एम आ भावना सूचवे छे। गुणीजनो प्रत्येनो प्रमोद भाव ते खरेखर पोताना गुणो वधारवा माटेनो भाव छ। जे आत्माओने सम्यग्दर्शननी रुचि होय तेमने गुणीजनो प्रत्ये खरी प्रमोद भावना होय छ। 'प्रमोद' सम्यग् गुणोनुं बहुमान सूचवे छे। ५. दुःखी जीवो प्रत्ये करुणा—दुःखनुं मूळ कारण मिथ्यात्व; एटले के पोताना स्वरूपनी भ्रमणा छे; ज्यांसुधी ते मिथ्यात्वने जीव टाळे नहि त्यांसुधी जीवनुं दुःख कदी टळे नहि। सुखनुं मूळ सम्यग्दर्शन छ। जे जीवोने सम्यग्दर्शन होय छे तेओने दुःखी (मिथ्यादृष्टि) जीवो प्रत्ये यथार्थ करुणा होय छ। आ करुणाभाव
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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