SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिक्रमण - आवश्यक ] [१२६ प्रणिपात स्तुति हे परमकृपाळु देव ! जन्म, जरा, मरणादि सर्व दुःखोनो अत्यंत क्षय करनारो ओवो वीतराग पुरुषनो मूळधर्म अनंतकृपा करी आप श्रीमदे मने आप्यो, ते अनंत उपकारनो प्रत्युपकार वाळवा हुं सर्वथा असमर्थ छु, वळी आप श्रीमद् कंइ पण लेवाने सर्वथा निःस्पृह छो; जेथी हुं मन, वचन, कायानी अकाग्रताथी आपना चरणारविंदमां नमस्कार करुं छं. आपनी परमभक्ति अने वीतराग पुरुषना मूळ धर्मनी उपासना मारा ह्रदयने विषे भवपर्यंत अखंड जाग्रत रहो ओटलुं मागं छं ते सफळ थाओ. ॐ शान्ति शान्ति शान्ति : ★ गुरुदेव प्रत्ये क्षमापना - स्तुति ★ गुरुदेव ! तारा चरणमां फरी फरी करुं हुं वंदना, स्थापी अनंतानंत तुज उपकार मारा हृदयमां. १ करीने कृपादृष्टि प्रभु ! नित राखजो तुम चरणमां, रे ! धन्य छे से जीवन जे वीते शीतळ तुज छायमां. २ गुरुदेव ! अविनय कई थयो, अपराध कई पण जे थया, करजो क्षमा अम बाळने, ओ दीनभावे याचना. ३ मन-वचन-काय थकी थया जाण्ये - अजाण्ये दोष जे, करजो क्षमा सौ दोषनी, हे नाथ! विनवुं आपने. ४ तारी चरण सेवा थकी सौ दोष सहेजे जाय छे, क्रोधादि भाव दूरे थई भावो क्षमादिक थाय छे. ५
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy