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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] १२७ पदवीओ पण में प्राप्त करी लीधी छे; किन्तु हे भगवन् ! जे सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप पदवी सर्वोत्कृष्ट मोक्षरूप सुख आपनार छे ते में हजी सुधी प्राप्त करी नथी; तेथी विनयपूर्वक प्रार्थना छे के कृपा करी मने सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्ररूपे पदवी, पूर्णतया प्रदान करो. मुमुक्षुनी मोक्षप्राप्ति माटे दृढता : ३२. अर्थ :–बाह्य (अतिशय आदि) तथा अभ्यंतर (केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि) लक्ष्मीथी शोभित वीरनाथ भगवाने पोताना प्रसन्नचित्तथी सर्वोच्च पदवीनी प्राप्ति अर्थे मारा चित्तमां उपदेशनी जे जमावट करी छे अर्थात उपदेश दीधो छे ते उपदेश पासे क्षणमात्रमां विनाशी ओवू पृथ्वीनुं राज्य मने प्रिय नथी ते वात तो दूर रही, परंतु हे प्रभो! हे जिनेश! ते उपदेश पासे त्रण लोकनुं राज्य पण मने प्रिय नथी. भावार्थ :-~-यद्यपि संसारमा पृथ्वीनुं राज्य अने त्रणे लोकना राज्यनी प्राप्ति ओक उत्तम वात गणाय छे. परंतु हे प्रभो! श्री वीरनाथ भगवाने प्रसन्नचित्ते मने जे उपदेश आप्यो छे ते उपदेश प्रत्येना प्रेम पासे आ बंने वातो मने इष्ट लागती नथी, तेथी हुं आवा उपदेशनो ज प्रेमी छु. ___३३. अर्थ:-श्रद्धाथी जेनुं शरीर नम्रीभूत (नमेलु) छे अवो जे मनुष्य, श्री पद्मनन्दि आचार्यरचित आलोचना नामनी कृतिने त्रणे (प्रातः मध्याह्न सायं) काल, श्री अर्हत् प्रभु सामे भणे ते बुद्धिमान मनुष्य सेवा उच्च पदने प्राप्त थाय छे के जे पद मोटा मोटा मुनिओ चिरकालपर्यंत तपद्वारा घोर प्रयले पामी शके छे. भावार्थ:-जे मनुष्य (स्वभावना भान सहित) प्रातःकाल, मध्याह्नकाल अने सायंकाल-त्रणे काल श्री अरहंतदेव सामे
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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