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________________ १००] . . [प्रतिक्रमण-आवश्यक निमित्त :- . . हिंसादिक पापन किये, जीव नर्कमें जाहि; जो निमित्त नहिं कामको, तो इम काहे कहाकिं. १२. अर्थ :-निमित्त कहे छे :–जे हिंसादिक पापो करे छे ते नर्कमा जाय छे. जो निमित्त कामनुं न होय तो ओम शा माटे कडं? १२. उपादान: हिंसामें उपयोग जिहं, रहै ब्रह्मके राच; . - तेई नर्कमें जात हैं, मुनि नहिं जाहिं कदाच. १३. अर्थ :-हिंसामें जेनो उपयोग (चैतन्यना परिणाम) होय अने जे आत्मा तेमां राची रहे ते ज नर्कमां जाय छे, (भाव) मुनि कदापि . नर्कमां जता नथी. १३. निमित्त : दया दान पूजा किये, जीव सुखी जग होय; जो निमित्त झूठो कहो, यह कयों मानै लोय. १४. अर्थ :-निमित्त कहे छः—दया, दान, पूजा करे तो जीव जगतमा सुखी थाय छे. जो निमित्त, तमे कहो छो तेम, जूठं होय तो लोको ओम केम माने? १४. उपादान : दया दान पूजा भली, जगत मांहिं सुखकार; तहं अनुभवको आचरन, तहं यह बंध विचार. १५. अर्थ :-उपादान कहे छे:—दया, दान, पूजा, वगेरे शुभभाव भले जगतमां बाह्य सगवड आपे, पण अनुभवना आचरणनो विचार करतां, ओ बधा बंध छे (धर्म नथी). १५. निमित्त : यह तो बात प्रसिद्ध है, सोच देख उर माहि; नरदेही के निमित्त बिन, जिय कयों मुक्ति न जाहि. १६.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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