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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच दिव्य तत्काले ज प्रगट्या, बंधन सर्व विदारी नाथ. वीर...८ संयम लई काज सुधार्या, चंदन बाळा कुमारी; वीर प्रभुनी शिष्या पहेली, पंच महाव्रत धारी नाथ. वीर...९ कर्म खपावी मुक्ते सीधाव्या, धन्य सती शिरदार; विनय विजय कहे भाव धरीने, वंदु हुं वारंवार नाथ. वीर.१० स्वार्थनी सज्झाय जगत हे स्वार्थका साथी, समज ले कौन है अपना; ये काचा काचका कुंभा, नाहक तुं देखके फूलता, पलकमें फुट जावेगा, पता ज्युं डालसे गिरता. जगत० १ मनुष्यकी एसी जींदगानी, अब तुं चेत अभिमानी; जीवनका क्या भरोसा है, करी ले धर्म की करणी. जगत० २ खजाना माल ने मंदिर, तुं तुं क्युं कहेता मेरा मेरा; इहां सब छोड जाना है, न आवे साथ अब तेरा. जगत० ३ कुटुंब परिवार सुत दारा, सुपन सम देख जग सारा; । नीकल जब हंस जावेगा, उसी दिन है सभी न्यारा. जगत० ४ तरे संसार सागर को, जपे जो नाम जिनवरको; कहे खान्ति वही प्राणी, तोडदे कर्म जंजीर को. जगत० ५ ८3 For Private And Personal Use Only
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
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