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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुरगडुमुनिनी सज्झाय उपशम आणो उपशम आणो, उपशम तप मांही राणो रे; विण उपशम जिन धर्म न शोभे, जिम जग नरवर काणो रे.१ तुरमिणी नयरी कुंभ नरेसर, राज करे तिंहा सुरो रे; तस नंदन ललितांग महामति, गुणमणी मंडित पूरो रे. गुरु तणी वरवाणी श्रवणे, सुणी संवेग न मायो रे; राजऋद्धि रमणी सह छंडी, चारित्र नीरे न्हायो रे. देश विदेश गुरु संघाते, विहार करे मुनि मोटो रे; सहे परिषह दोष निवारे, ऋषि उपशम रस लोटो रे. अन्य दिवस तस क्षुधा वेदनीय, करमे न सही जाय रे; इंद्र चंद्र विद्याधर मुनिवर, कर्म करे तेम थाय रे. कूर घडो दिन प्रत्ये लावे, एषणा दोष निवारी रे; कूरगडु ते माटे कहेवाया, संयम शोभा वधारी रे. दिवस पजुसण गुरु आदेशे, वोहरी कूर सुसाधु रे; चार श्रमण चउमासी तपीया, देखाडे निराबाध रे. ते चारे तस पात्रमां थुंके, रोषे, लवे तु पापी रे; आज पजुसण कां तुं विमासे, दुरगतिशुं मति थापी रे. कूरगडु समता रसना भरीया, हैये विमासे रुडुं रे; ७५ For Private And Personal Use Only २ ३ ४ ५ ६ ७ ८
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
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