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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंचन कोमल काया शोषवी रे, विरस निरस आहार; संवेगी मुनिवर शिर सेहरो रे, बहु बुद्धि सकल भंडार.सा० ४ वेश्या घर पहोंच्यो अणजाणतो रे, धर्मलाभ दीये जाम; धर्मलाभनुं काम इहां नहि रे, अर्थ लाभनुं काम. सा० ५ बोल खमी न शक्या गरवे चड्या रे, खेंच्युं तरणुं रे नेव; दीर्छ घर सारु अरथे भर्यु रे, जाणे प्रत्यक्ष देव. सा०६ हाव भाव विभ्रम वसे आदरी रे, वेश्या शें घरवासः । पण दिन प्रति दश दश बुझवी रे, मूके प्रभुजीनी पास. सा० ७ एक दिवस नव तो आवी मल्या रे, दसमो न बुझे कोय; आसंगायत हास्य मिषे कहे रे, पोते दशमा रे होय. सा० ८ नंदिषेण फरी संयम लीये रे, विषय थकी मन वाळ; चूकीने पण जे पाछा वळे रे, ते विरला इण काळ. सा० ९ व्रत अकलंक जो राखवा खप करो रे, तो इण जुठे संसार; कवि जिनहर्ष कहे तुं एकलो रे, परघर गमन निवार.सा० १० वज्रस्वामीनी सन्झाय सांभळजो तुमे अद्भुत वातो, वयर कुंवर मुनिवरनी रे; षट् महिनाना गुरु झोळीमां, आवे केलि करंता रे, त्रण वरसना साधवी मुखथी, अंग अगीयार भणंता रे. सां० १ राजसभामां नहि क्षोभाणा, मात सुखलडी देखी रे; ७० For Private And Personal Use Only
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
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