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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा०७ एक रामारमे कंतY, एक छंडे सकल शणगार रे. मा० ४ एक घरे सहु मली बेसतां, नित नित करता विलास रे; ते रे साजनीयां उठी गयां, जाणतां अथिर संसार रे. मा० ५ एहवू स्वरुप संसारनु, चेत चेत जीव गमार रे; दश दृष्टांते दोहीलो करी, पामवो मानव अवतार रे. मा० ६ हर्षविजय कहे एह, जे भजे जिनपद रंग रे; ते नरनारी वेगे वरे, मुक्तिवधु केरो संग रे. वैराग्यनी सज्झाय (राग : नेम नेम करती नारी) आव्यो त्यारे मुठी वाळी, जाती वेळाए तो खाली; जाती वेळा खाली जीवडा, रे तुं समय सुधार रे, बहु फाल्यो बहु फुल्यो, अंते देशे बाली रे. अंते०१ उहां उहां तुं तो करतो, जनमतां ते वारे रे; सघळु ते रही गयुं प्रभुने दरबार रे. अंते०२ आव्यो त्यारे साकर वेंची, हरख न माय रे; जाति वेळा रोवा लाग्यो, करे हाय हाय रे. अंते० ३ आव्यो त्यारे पहेरवानां, खावानां अपार रे; जाति वेळा तारुं बधुं, लूंटी लेवाय रे. अंते०४ आव्यो त्यारे पारणामां, झुलावे अपार रे; ३८ For Private And Personal Use Only
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
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