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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एम समजावी रे पाछो वालीओ, आण्यो गुरुनी पासोजी; सदगुरु दीए रे शीख भली परे, वैरागे मन वासोजी. अरणिक.९ अग्नि धखंती रे शिला उपरे, अरणिके अणसण कीधोजी; रूप विजय कहे धन्य ते मुनिवरू, जेणे मन वांछित लीधोजी. अरणिक.१० बाहुबली सन्झाय राजतणा रे अति लोभिया, भरत बाहुबलि झूझे रे; मुठी उपाडी रे मारवा, बाहुबलि प्रतिबूझे रे. वीरा मोरा गज थकी ऊतरो, गज चड्ये केवल न होय रे. वीरा.१ ऋषभदेव तिहां मोकले, बाहुबलिजीनी पासे रे; बंधव गज थकी ऊतरो, ब्राह्मी सुंदरी एम भाखे रे. वीरा.२ लोच करीने चारित्र लीयो, वली आव्यो अभिमान रे; लघु बंधव वांदुं नहीं, काउस्सग्ग रह्या शुभ ध्यान रे. वीरा.३ वरस दिवस काउस्सग्ग रह्या, शीत तापथी सूकाणा रे; पंखीडे माला घालीया, वेलडीये वीटाणा रे. वीरा.४ साधवीनां वचन सुणी करी, चमक्यो चित्त मोझार रे; हय गय रथ सहु परिहरिया, वली आव्यो अहंकार रे. वीरा.५ वैरागे मन वालीयुं, मूक्युं निज अभिमान रे; पग ऊपाड्यो रे वांदवा, ऊपन्युं केवलज्ञान रे. वीरा.६ १० For Private And Personal Use Only
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
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