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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिहां कने उपजे जीवन असंख्य जे, तेह विचारीने जुओ रे.५ ढुंढक ढुंढक सघळो भटके, धर्म न पाम्यो लेश रे; राज दरबार ने नीचना आहारथी, दया गई छे विशेष रे. ६ बेइंद्रि वचन ते एहवा बोलतां, शाने तुं साध कहावे रे. वडीनीतिने लघुनीति चुंथतां, तिहां तुज दया न आवे रे. ७ एकेन्द्रियनो उगारो करे, बेइंद्रियने तुं खाये रे; विदळ विदारीने कूडां बोलता, नीच गतिए ते जाय रे. ८ दया विचारी रे सूत्र सिद्धांतथी; धारजो गुरु उपदेश रे; दशवैकालिके रे हिंसा टाळवी, अनुबंधी विशेषो रे. ९ इम जाणीने रे हिंसा टाळजो, ए जिन मुनिवर वाणी रे; रत्नविजय गुरु चरण कमल नमी, धर्म करो सवि प्राणी रे.१० सूत्र उत्थापेरे समकित हीणो, ते करे नीचनो आहार रे; समकित विना तो समकित आपे, ते नहि तारणहार रे. ११ घीना गुणनी सन्झाय (दोहा) भवियण भाव घणो धरी; आणी गुणनी श्रेणी, सूपडा सरखा थाय जो, चाळणि परे महजेणी. साप तणां गुण म आमजो, गाय तणां गुण आप; जुओ चार नीरस चरी, आपे धृत अहि नाण. १२० For Private And Personal Use Only
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
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