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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुम प्रासादे आहारने काजे, रहिया वरस लगे फीरता.कई०३ अतुल बली महावीर सरीखा, अंगूठे मेरु कंपाव्यो; तुम प्रसादे अनार्य देशमां, संगम चालीने आयो. कई० ४ दधिवाहन राजानी बेटी, चंदनबाला कहीये; तुम प्रसादे राजगृही के, चौटेमें वेचाणी कहीए. कई० ५ हरिश्चंद्र राया सु तारा सती, पुत्र लईने नीसर्या, सुभंगी कुलकी करी चाकरी, पाणी पीवाना रह्या. कई०६ कुड कपट माया विष, भरीयो काम चलीयो एक ठगाई, अधिकी कटके, श्रावक नाम धरायो. कई० ७ इत्यादिक मोटा पुरुषोत्तम करणी करी ठाम पाम्या, आनंदघन इम संगत बोले कर्मथी मेरा पार न आया.कई० ८ नरक दु:खनी सन्झाय (राग - सुणो चंदाजी...) हे सुण गोयमजी, वीर पयंपे, नरक तणा दुःख वारता; परनारी संगत जे करता, वली पाप थकी पण नही डरतां, जमरायनी शंका नवि धरतां. सुण० १ हे श्रोताजनो, नरकनां दु:ख सांभलता हैया थर थरे; हे गुणवंता, वीरवाणी सांभलीने धर्म खजानो भरो, लोहनी पुतलीने तपावे छे, अति अग्नि मय बनावे छे; ११५ For Private And Personal Use Only
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
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