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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेठ सुदर्शनने टली, शूली सिंहासन होय, गुण गाये गगने देवता, महिमा शीलनो जोय. मूल चारित्र- ए भलुं, समकित वृद्धि निदान, शील सलिल धरे जि के, तस हुए सुजश वखाण. ११ दशमा अध्ययननी सन्झाय ते मुनि वंदो ते मुनि वंदो, उपशम रसनो कंदो रे; निर्मल ज्ञान क्रियानो चंदो, तप तेजे जेहवो दिणंदो रे. ते० १ पंचाश्रवनो करी परिहार, पंच महाव्रतधारो रे; षट्कायजीव तणो आधार, करतो उग्र विहारो रे. ते० २ पंच समिति त्रण गुप्ति आराधे, धर्म ध्यान निराबाध रे; पंचम गतिनो मारग साधे, शुभ गण तो इम वाधे रे. ते० ३ क्रय विक्रय न करे व्यापार, निर्मम निरहंकार रे; चारित्र पाळे निरतिचारे, चालतो खड्गनी धार रे. ते० ४ भोगने रोग करी जे जाणे, आपे पुण्य वखाणो रे; तप-श्रुतनो मद नवि आणे, गोपवी अंग ठेकाणे रे. ते० ५ छांडी धन-कण-कंचन-गेह, थई निःस्नेही निरिह रे; खेह समाणी जाणी देह, नवि पोसे पापे जेह रे. ते०६ दोष रहित आहार जे पामे, जे लुखे परिणामे रे; लेतो देहनुं सुख नवि कामे, जागतो आठेइ जामे रे. ते० ७ ९९ For Private And Personal Use Only
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
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