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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org . पद्म० २ अजर अमर अगोचर विभु, नाम न रूप न जातिरे; जगगुरु जय श्रीचिंतामणि, त्रणभुवनमांही ख्यातिरे.. उपमातीत परमातमा, अनुभवविण न जणायरे; दिशि देखाडी आगम रहे, अनुभवे प्रभु परखायरे.... पद्म० ३ सद्गुरु-तीर्थउपासना, स्याद्वाद सूत्रनो बोधरे; परंपर गुरुगम जोडतां, करे भवी जिनवरशोधरे. ज्ञानना मानमां ध्यान छे, ध्यानथी होय समाधिरे; परम प्रभु एक तानमां, भेटतां जाय उपाधिरे. अनुभव-अमृत स्वादतां, चित्त अन्यत्र न जायरे; चकोर जेम चंद्र तेम राचतुं परम प्रभुरूपमांह्यरे. ... पद्म० ६ सुख अनंतनी राशिमां, जीवनमुक्ति पद पायरे; बाह्यनां सुख रुचे नहि, निश्चयसुख निजमांह्यरे..... पद्म० ७ परपरिणतिरंग परिहरी, शुद्ध परिणतिमांही रंगरे; बुद्धिसागर जिनदर्शन, देखवा प्रेम अभंगरे. ८८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only . पद्म० ४ .... . पद्म० ५ श्री पद्मप्रभ स्तवन पद्मप्रभु जिन! तुज मुज आंतरुं रे, किम भाजे भगवंत ! ? कर्मविपाके कारण जोईने रे, कोई कहे मतिमंत . . पद्म० १ ..... पद्म० ८
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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