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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भिन्न अभिन्नता नित्यता, तेम अनित्य पर्यायरे; एक समयमांही संपजे, पर्याय उपजे विलायरे. .... सुमति० २ अगुरूलघु पर्यायनो, शक्ति अनन्ती सदायरे; परिणमे असंख्यप्रदेशमां कारक षट् उपजायरे...... सुमति० ३ आदि अनादि षट्कारको, व्यक्तिपणे एकेक प्रदेश रे; अनादि अनन्त स्थिति शक्तिथी, कारक षट लहो बेशरे..... सुमति० ४ एक अनेकता वस्तुमां, नित्य अनित्यता धाररे; समय सापेक्ष विचारतां, होय अनेकान्त विस्ताररे. सुमति० ५ सदसत् कथ्य अकथ्य छे, जिनवर धर्म अनन्तरे; ज्ञानमां ज्ञेयनी भासना, जाणे एक समय भदन्तरे. सुमति०६ सम्यग्ज्ञानप्रभावथी, प्रभु! तुज रूप जणायरे; चार प्रमाण ने भंगथी, धर्म अनेक परखायरे........ सुमति० ७ मन-वच-कायअतीत तुं, आदर्यो योगथी साररे; तुज मुज एकता संपजे, बुद्धिसागर निर्धार रे...... सुमति० ८ श्री सुमतिनाथ स्तवन सुमतिचरणकज आतम अरपणा, दरपण जेम अविकार-सुज्ञानी! मतितरपण बहुसंमत जाणीए, परिसरपण सुविचार .... सु० १ ८५ For Private And Personal Use Only
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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