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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुगुरु कुदेव कुधर्म निवासे, मिथ्या-मतमें फसायो. में प्रभु आजथी निश्चय कीनो, सभी मिथ्यात्व गमायो..तुम.४ बेर बेर करूं विनति इतनी, तुम सेवा रस पायो. ज्ञान विमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो. तुम.५ श्री ऋषभदेव स्तवन ऋषभ देव हितकारी, जगत गुरु ऋषभ देव हितकारी. प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति व्रतधारी.... जगत.१ वरसी-दान देई तुम जग में, ईलति ईति निवारी. तैसी काही करतु नहि करुणा, साहिब बेर हमारी... जगत.२ मागत नहीं हम हाथी घोडे, धन कन कंचन नारी. दीओ मोहे चरण-कमलकी सेवा,याहि लागत मोहे प्यारी...जगत.३ भवलीला वासित सुर डारे, तुं पर सबहि उवारी. में मेरो मन निश्चय कीनो, तुम आणा शिर धारी... जगत.४. ऐसो साहिब नहि कोई जगमें, यासुं होय दिलदारी. दिल ही दलाल प्रेम के बिचें, तिहां हठ खेंचे गमारी.जगत.५. तुम हो साहिब मैं हूं बंदा, या मत दीओ विसारी. श्री नय विजय विबुध सेवक के,तुम हो परम उपकारी.जगत.६. ७४ For Private And Personal Use Only
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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