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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्य ने भावथी नवनिधि प्रगटे, नवपद ध्यानने धरतारे; ब्रह्मचर्य नव वाडो धारी, नरनारी सुख वरतारे. ....... नव० २ नवपदरूपी आतम पोते, उपादानथी जाणीरे; निमित्तथी पर जाणी भावे, आराधंतो ज्ञानीरे.......... नव० ३ षट्चक्रोमां नवपदध्याने, आत्मसमाधि प्रगटेरे; एकता स्थिरता लीनता योगे, घाती कर्मो विघटेरे.....नव० ४ जिनवर महावीर देवे भाखी, नवपद गुण गुणी भावेरे; बुद्धिसागर आत्मस्वरूपी, नवपद सत्य सुहावेर रे..... नव० ५ वर्धमान आंबिलतप स्तवन वर्धमान जिन वंदु हो भावे वर्धमान जिन वंदूं; आतम भावे आणंद हो भावे वर्धमान जिन वंदुं. वर्धमान आंबिल तप भाख्युं, परमातम पद वरवा; एकादिक आंबिल एम चढतां, शत आंबिल एम करवां, ....हो भावे० १ एक आंबिल करी उपवास पश्चात, बे आंबिल उपवासे; चढते आंबिल उपवास अंतर, विशे विश्राम वासे. हो भावे०२ नवपदमांथी गमे ते पदनो, जाप ते वीस हजार; बार खमासमण लोगस्स बारनो, कायोत्सर्ग विचार.हो भावे०३ १८० For Private And Personal Use Only
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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