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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए अढार दूषण वरजित तनु, मुनिजनवृंदे गाया; अविरतिरूपक दोषनिरूपण निरदूषण मन भाया.. हो म० १० ईणविध परखी मनविशरामी, जिनवरगुण जे गावे; दीनबंधुनी महेर नजरथी, आनंदघन पद पावे..... हो म० ११ श्री मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन मुनिसुव्रत जिन वंदतां, अति उल्लसित तन मन थाय रे; वदन अनोपम निरखतां, मारां भव भवनां दुःख जाय रे; मारां भव भवनां दुःख जाय, जगतगुरु जागतो सुखकंद रे; सुखकंद अमंद आनंद, परमगुरु दीपतो सुखकंद रे.......... १ निशदिन सुतां जागतां, हैडाथी न रहे दूर रे; जब उपकार संभारीए, तव उपजे आनंदपूर रे. ..............२ प्रभु उपकार गुणे भर्या, मन अवगुण एक न माय रे; गुण गुणअनुबंधी हुआ, ते तो अक्षयभाव कहाय रे. ........३ अक्षय पद दीए प्रेम जे, प्रभुनुं ते अनुभवरूप रे; अक्षर-स्वर-गोचर नहि, ए तो अकल अमाय अरूप रे. .....४ अक्षर थोडा गुण घणा, सज्जनना ते न लिखाय रे; वाचकयश कहे प्रेमथी, पण मनमांहे परखाय रे..............५ १२३ For Private And Personal Use Only
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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