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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुज पगले अमे चालशुं, पामीने परमार्थ; अनुभव रंगे भेटीने, प्रभु थई| सनाथ. ................ अर० ६ प्रेम भक्ति उत्साहमां, श्रुतज्ञाने दिल लाय; बुद्धिसागर ध्यानमां, प्रभुता घटमांही पाय.............. अर० ७ श्री मल्लिनाथ स्तवन मल्लिजिन सहज स्वरूपर्नु, वर्णन कहो केम थायरे; वैखरी वर्णन | करे, कंइ परामांही परखायरे. .....मल्लि० १ परमब्रह्म पुरुषोत्तम, अनंगी अनाशी सदायरे; विमल परम वितरागता, अक्षय अचल महारायरे. ..मल्लि० २ निर्भयदेशना वासी जे, अजर अमर गुणखाणरे; सहज स्वतंत्र आनन्दमां, भोगवो शिव निर्वाणरे.....मल्लि० ३ चेतन असंख्यप्रदेशमां, वीर्य अनंत प्रदेशरे; छती | सार्मथ्य भावथी, वापरो समये निःक्लेशरे. .मल्लि० ४ त्रिभुवनमुकुटशिरोमणि, परम महोदय धर्मरे; जगगुरु परमबंधु विभु, सादि-अनन्त सुशर्मरे.........मल्लि० ५ अलख अगोचर दिनमणि, अविचल पुरुष पुराणरे; सत्य एक देव! तुं जगधणी,धारुं हुं शिर तुज आणरे. .... मल्लि०६ मल्लिजिन शुद्ध आलंबने, सेवक जिनपणुं पायरे; बुद्धिसागर रस रंगमां, भेटिया चिद्घनरायरे........मल्लि० ७ १२१ For Private And Personal Use Only
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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