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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री सुविधिनाथ स्तवन सु० ४ सुविधि जिणेसर पाय नमीने, शुभ करणी एम कीजे रे; अति घणो उलट अंग धरीने, प्रह उठीने पूजीजे रे सुविधि० १ द्रव्य-भावशुचिभाव धरीने, हरखे देहरे जईए रे; दह तिग, पण अहिगम साचवतां, एक - मना धुरि थई रे सु० २ कुसुम, अक्षत, वर वास सुगंधो, धूप, दीप मन साखी रे; अंगपूजा पण भेद सुणी एम, गुरुमुख आगम भाखी रे सु० ३ एहनुं फळ दोय भेद सुणीजे, अनंतर ने परंपर रे; आणापालण चित्तप्रसन्नी, मुगति सुगति सुरमंदिर रे...... फूल अक्षत वर धूप पईवो, गंध नैवेद्य जळ भरी रे; अंग अग्र पूजा मळी अडविध भावे भविक शुभ गति वरी रे. ५ सत्तर भेद एकवीरा प्रकारे, अष्टोत्तरशत भेदे रे; भावपूजा बहुविध निरधारी, दोहग दुर्गति छेदे रे तुरिय भेद पडिवत्तिपूजा, उपशम खीण सयोगी रे; चउहा पूजा ईम उत्तरज्झयणे, भाखी केवलभोगी रे ... एम पूजा बहु भेद सुणीने, सुखदायक शुभ करणी रे; भविक जीव करशे ते लहेशे, आनंदघन पद धरणी रे. सु० ८ सु० ७ ९७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only सु० ६
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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