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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९. प्रार्थना एक समय जब भयंकर दुष्काल चल रहा था, तब गाँव के लोग प्रार्थना करने के लिए एकत्र हुए । एक वणिक प्रार्थना में सम्मिलित नहीं हुआ, इसलिए सब लोग उसे प्रार्थना करने के लिए बुलाने लगे । लेकिन उस वणिक ने प्रार्थना में जाना स्वीकार नहीं किया; क्योंकि गाँव के लोगों का धर्म सिर्फ दिखावे का था, हृदय का नहीं । झूठे लोगों की प्रार्थना भगवान् नहीं सुनता है । गाँव के लोगों ने बहुत प्रार्थना की, फिर भी वर्षा जरा भी नहीं हुई । दुष्काल फैलता ही गया । भगवान ने प्रार्थना नहीं सुनी । बाद में वह वणिक हाथ में तराजू लिये भगवान् से प्रार्थना करने लगा : यदि इस तराजू को मैंने देव माना हो, इस तराजू से किसी को दुःख न पहुँचाया हो और इससे लोगों के दुःख दूर किये हों तो वर्षा होगी और दुष्काल चला जायेगा ।” प्रार्थना होते ही मूसलाधार वर्षा हुई । धर्म को हृदय में उतारना चाहिए । धर्म दिखावा करने के लिये नहीं है । धर्ममय जीवन जीनेवाले की प्रार्थना में सात्त्विकता होती है और इससे प्रकृति के तत्त्वों पर भी वे विजय प्राप्त कर सकते हैं । ८१ For Private And Personal Use Only
SR No.008736
Book TitleSamvada Ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1990
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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