SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५. सफलता दूज का चंद्र छोटा होता है, इसलिए दुनिया उसका दर्शन करने जाती है । उसमें नम्रता है इसलिए वह धीरे धीरे बड़ा होता जाता है । वह अमावास्या की लघुता में से पूर्णिमा की गुरुता की ओर बढता जाता है । बड़ा होने के बाद उसे छोटा बनना पड़ता है जो छोटा है, उस को छोटा नहीं होना पड़ता । छोटे बालक को दुनिया प्यार करती है, बड़े को कोई प्यार नहीं करता । हमारे शरीर में मस्तक सबसे बड़ा माना जाता है और पाँव सबसे छोटे । किन्तु पाँव की रज-चरणरज ली जाती है, मस्तक की नहीं । संसार में पानी के बुलबुले की तरह जो बड़े होते हैं, वे नष्ट भी जल्दी होते हैं । बारह-बारह मास की उग्र तपश्चर्या के बाद भी बाहुबली को केवलज्ञान प्राप्त नहीं होता है । लेकिन “हे मेरे वीर ! हाथी पर से नीचे उतरो सुनते ही उनके अहंकार का नाश हुआ, नम्रता आई । और जैसे ही उन्होंने छोटे बंधु-साधुओं की वंदना के लिए कदम उठाया वैसे ही केवल- ज्ञान समुत्पन्न हुआ । जहाँ नम्रता है, लघुता है, वहाँ सफलता है, उन्नति है । AGS ११४ For Private And Personal Use Only
SR No.008736
Book TitleSamvada Ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1990
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy