SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir INOR ७०. पारसमणि मन को काबू में करने में ही मनुष्य की महत्ता है । भगवान महावीर महाभयंकर वन में आकर तीव्र साधना शुरू करते हैं । मनुष्य को जीवन में प्राप्त सद्गुणों का कसौटी पर कसना चाहिए । भगवान भी अपने को कसौटी पर कसते हैं । वहाँ एक क्रोधी सर्प आता है और विष से भरी हुई अपनी दृष्टि प्रभु के ऊपर स्थिर करता है । वह विषदृष्टि था, पर भगवान उसके जीवन से ही जहर को निकाल देते हैं। जीवन का जहर उतारना अत्यंत कठिन होता है । भगवान परम प्रकाश मान थे, वे परम तेजोमय थे इसलिए उन पर उसके क्रोध का कोई असर नहीं हुआ । भगवान के चरणों पर विषाक्त दंश देकर सर्प दूर हट गया, फिर भी भगवान की काया तो प्रसन्नता से हँसती ही रही । सर्प के अज्ञान पर भगवान की करुणा बरसने लगी । भगवान के चरण में से रक्त के बदले दूध की धारा बही इसे देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ । बालक के प्रति माता का प्रेम ही उसके रक्त को दूध बनाता है । भगवान तो समस्त जगत के माता-पिता के समान थे, उनके अंतर में प्रत्येक जीव को तारने के लिए अपार करुणा भरी थी, फिर For Private And Personal Use Only
SR No.008736
Book TitleSamvada Ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1990
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy