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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञान से मोक्ष जो दिखाई देता है, उसे क्या देखें ? जो नहीं दिखाई देता, वही देखने योग्य है; लेकिन उस अरूपी पदार्थ को ज्ञान चक्ष से ही देखा जा सकता है, चर्मचक्षुओं से नहीं । कौन खोलेगा ज्ञानचक्षु ? संयमी साधु या ज्ञानी गुरु ! अज्ञानतिमिरान्धानाम् ज्ञानाञ्जन-शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: । (अज्ञान के अन्धकार से अन्धों की आँख को ज्ञानरूपी अंजन शलाका से खोलने वाले गुरु को में नमन करता हूँ।) जम्बकुमार के ज्ञानचक्ष सुधर्मा स्वामी क उपदेश से खुल गये । व अपनी नवोढाओं को सांसारिक सम्बधों की असारता समझाते हैं और जिनश्वर से सम्बन्ध जोड़ने की सलाह देते हैं, जो कभी नहीं टूटता, जिसमें वियोग की कोई सम्भावना नहीं है । चोरों का सरदार प्रभव चोरी करने आता है और इस उपदेश को जम्बूकुमार से सुनकर उसकी भी आँखें खुल जाती हैं । फलस्वरूप जम्बूकमार जब दीक्षा लेते हैं, तब पाँच सो चोर साथियों सहित प्रभव भी दीक्षित हो जाते है । गुरुदेव के सान्निध्य में श्रुतज्ञान प्राप्त करके संयम और तपस्या के बल पर प्रगति करते हुए वे आचार्य प्रभवस्वामी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं । गुरुदेव की कृपा से दृष्टि में ऐसी ही निर्मलता आ जाती है । कहावत "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि !" दुर्योधन से राजसभा में पूछा गया कि अच्छे आदमी कौन-कौन हैं तो बोला - "सिर्फ में ही अच्छा हू विपरीत युधिष्ठिर से पूछा गया कि बूरे आदमी कौन-कौन हैं तो बोले :- “सिर्फ में ही बरा हं !" चंडकौशिक की दृष्टि में विष था और महावीर प्रभु की दृष्टि में क्षमा For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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