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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसे गुरुओं को भविष्य में पछताना पड़ेगा - ऐसी चेतावनी महात्मा कबीर ने इन शब्दों में दी थी : कहते सो करते नहीं, मुँह के बड़े लबार । काला मुँह हो जायगा, साई के दरबार ।। केवल वेष देखकर किसी को 'गुरु' नहीं मान लेना चाहिये । कहावत “पानी पीजे छानकर ! गुरु कीजे जानकर !!" विवेक से जान-पहिचानकर ही हमें 'गुरु' का निर्णय करना चाहिये । स्वामी सत्यभक्त ने लिखा हैं : बिछा हुआ है, जगत में कु गुरु जनों का जाल । उसे तोड़ने के लिए ले विवेक-करवाल ।। ज्ञान नहीं; संयम नहीं और न पर-उपकार । वे कु साधु गुरुवेष में हैं पृथ्वी के भार ।। इसका आशय यह है कि जिसके जीवन में ज्ञान, संयम और परोपकार विद्यमान हो, वही गुरु है ।। ___मूर्तिकार अपनी कला के द्वारा पत्थर को प्रतिमा में परिवर्तित कर देता है । पत्थर को छैनी के तीव्र प्रहार सहने पड़ते हैं, तभी वह मूर्ति के रूप में पूज्य बनता है । इसी प्रकार गुरु अपने शिष्य को दानव से मानव और मानव से महामानव बनाता है । गुरु की डाँट-फटकार और उसकी छड़ी के प्रहार सहकर ही शिष्य सुयोग्य विद्वान् बनता है : गीर्भिर्गुरूणां पुरुषाक्षराभि - र्निपीडिता यान्ति नरा महत्त्वम् अलब्धशाणोत्कषणा नृपाणाम् न जातु मौलौ मणयो विशन्ति ।। For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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