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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. दिया । यहाँ भी अपने गुणों के कारण महाराज चन्द्रयश का वह प्रेमपात्र बन गया । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उधर से ज्यों ही नमिराज को ज्ञात हुआ, त्यों ही उन्होंने राजदूत के साथ यह सन्देश सुदर्शन नगर में भिजवाया कि विशालकर्ण हमारा है; उसे शीघ्र हमें सौंप दें अथवा युद्ध के लिए तैयार रहें । सच्चे क्षत्रिय युद्ध की धमकियों से नहीं डरते । चन्द्रयश ने चुनौती स्वीकार कर ली । युद्धक्षेत्र में दोनों ओर से सेनाएँ आ डटीं । ११२ मदनरेखा को जब मालूम हुआ कि एक हाथी के पीछे घोर युद्ध दो सहोदर भाइयों में छिड़ने वाला है, तब वह तत्काल एक अन्य साध्वी को साथ लेकर युद्धक्षेत्र में पहुँची । दोनों को एक दूसरे का परिचय कराया। इससे वैर प्रेम में बदल गया। दोनों भाइयों का भरतमिलाप देख कर सबकी आँख हर्षाश्रुओं से भीग गई। दोनों सेनाएँ महासती मदनरेखा की जयजयकार करके अपनी-अपनी राजधानियों को लौट गई। महासती मदनरेखा की कृपा से आज बिना युद्ध किये ही दोनों राजाओं की विजय हो गई थी ! For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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