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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपक मन में जो शंका उठ रही है, उसका समाधान तभी होगा, जब आप इस आगन्तुक देव के पूर्वभव का वृत्तान्त सन लेंगे । यही देव पूर्वभव में इस सती पतिव्रता महिला का पति युगवाह था । मालव प्रान्त क सुदर्शन नगर के राजा मणिरथ का यह छोटा भाई था । मणिरथ इस सती के सौन्दर्य पर आसक्त हो गया था | युगबाहु को मिलन में बाधक मान कर मणिरथ ने एक दिन विषबुझी तलवार से उस पर प्रहार कर दिया । युगबाहु मूर्छित होकर जमीन पर लूढक गया । मणिरथ घबराकर वहाँ से भाग निकला । युगबाहु क अंगरक्षकों ने उसका पीछा किया; परन्तु वह पकड़ ड़ा न जा सका । मदनरखा ने दखा कि यगबाह क प्राण अब कछ ही मिनिटों के मेहमान हैं, तब इसके मस्तक को गोद में रख कर उचित उपचार द्वारा पहले मूर्छा दूर की और फिर गति सुधारने क लिए धार्मिक उपदेश दिया - अनित्य भावना, अशरण भावना एकत्व भावना की धारा बहा कर पतिदेव को भावना को निर्मल बना दिया । फलस्वरूप देह छोड़ने के बाद इसे देवगति में ऐसा दिव्यरूप और अटूट वैभव प्राप्त हुआ । यदि मणिरथ के प्रति प्रतीकार की भावना से क्रोध की अवस्था में इसका प्राणान्त होता तो यह अवश्य नरक में जाता ! देवगति में उत्पन्न होते ही इसने जान लिया कि नरक से बचाकर, स्वर्ग में भजनेवाली परमापकारीणी, मदनरेखा इस समय यहाँ है; अत: प्रत्युपकार के रूप में कछ सेवा सहायता करनी चाहिये । अपनी हार्दिक कृतज्ञता का परिचय देने क ही लिए इस देव ने पहले मदनरेखा को वन्दन किया था । यह इस इस समय पत्नी नहीं, किन्तु धर्मोपदेशिका गुरुणी मानता है ।" फिर श्रोताओं में से एक ने पूछा :- "मणिरथ का क्या हाल हुआ ?" महामुनि :- मणिरथ पकड़े जाने के भय से जंगल में पैदल ही भागा जा रहा था। धीरे-धीरे अँधेरा हआ । अँधरे में एक काले साँप पर उसका पाँव पड़ गया । उसने मणिरथ के पाँव में डस लिया । इसते ही उसके सारे शरीर में जहर फैल गया । मणिरथ का जीव मर कर पांचवीं नरक में उत्पन्न हुआ है और अपने पापों का कफल भोग रहा है ।" फिर एक अन्य श्रोता ने पूछा :- “जब मणिरथ और यगवाह दोनों पर गये- तब सुदर्शन नगर का इस समय राजा कौन है ?" मणिचूड :- “युगबाहु का बडा पुत्र चन्द्रयश। वही इस समय राजसिंहासन पर आसीन होकर कुशलतापूर्वक उस नगर की प्रजा का पालन कर रहा एक जिज्ञास ने पूछा :- “महासती मदनरेखा को जंगल में किसने भेजा ?" ११० For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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