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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उससे बात नहीं की । इक्कीस वर्ष इसी तरह बिना बोल बीत गये और गतवर्ष तो तम युद्धार्थ अपनी सेना के साथ प्रस्थान हो कर गये थे । इस प्रकार मिलन का मौका ही नहीं आया; फिर भी उसक शरीर में गर्भचिन्ह प्रकट हान लगे ता इससे पहले कि लोग हमारे कुल की पवित्रता पर उँगली उठायें, हमने अंजना को घर से निकाल दिया ।" कमार :- “अन्धेर हो गया मा ! तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये था । सना के साथ जिस दिन युद्ध के लिए हमने प्रस्थान किया था उसी दिन हमारा पड़ाव एक सरोवर के तट पर हुआ । चाँदनी रात थी । सारी सेना सो रही थी; परन्तु सरोवर क तट पर एक पक्षी पति के वियोगमें रो रही थी पझे भी अंजना की याद आ गई । नींद आ नहीं रही थी । उसी समय मरी दया दख कर एक मित्र ने मुझे सलाह दी कि अभी राजधानी स अधिक दर तो हम आये नहीं हैं । चुप चाप यहाँ से तेज घोड पर सवार होकर आप पर जाइये और मिलकर अरूणोदय से पूर्व यहाँ आ जाइये । किसी को मालूम भी नहीं होगा और आपका मन भी सन्तुष्ट रहेगा । इससे युद्ध क्षेत्र में आप अधिक उमंग से लड़ सकेंगे और विजय आसान हो जायगी । मित्र की उस सलाह क अनुसार ही में अंजना से चप चाप मिलने आया था मां ! निशानी के रूप में मैं अपनी अंगठी भी उसकी उंगली में पहिना गया था, जिससे कोई उसंक चरित्र पर सन्देह न कर।" ___मा :- "हा, उसन प्रमाण के रूप में तुम्हारे नाम से अंकित अंगूठी दिखाई जरूर थी; परन्त मेन समझा कि वह नकली अंगूठी अपनी इजत बचाने क लिए उसने बनवा ली होगी; इस प्रकार जब हमने उस पर विश्वास नहीं किया तो उस उसंक मायंक भेज दिया; कुछ दिनों बाद पता चला कि यहाँ से अंजना अपने पीहर गई थी; किन्तु माता-पिता ने भी उस पर स निकाल दिया । अब पता नहीं, इस समय वह कहाँ है ?" कमार :- “कहीं । भी हो मा ! में आज ही इसी समय उसे खोजन के लिए निकल रहा हूँ और प्रतिज्ञा करता हूँ कि जब तक उसे खोज नहीं लगा, घर नहीं लौटँगा ।" पवनजय कमार अंजना की खोज में निकल गये । सबसे पहले वे अपनी ससुराल के नगर में गये और वहाँ की सीमा पर बसने वाले नागरिकों से पूछा कि साल भर पहल गर्भवती अंजना यहाँ से चली गई थी- अकली; सो याद करक बताइये कि वह किस दिशा में गई ? फिर नागरिकों के द्वारा प्रदर्शित दिशा में वे चल पड़े । अनेक दुर्लध्य पहाड़, नदिया और पेड़ो से भरे घोर जंगलों की खाक छानते रहे; परन्तु अंजना का कहीं पता नहीं चला । १०७ For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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