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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ● गुरुमहिमा कबीर साहब का यह दोहा गुरुभक्ति के लिए प्रेरित करनेवाला है । गुरूदेव के सामने हम प्रश्न लेकर जा सकते हैं; परन्तु याद रखिये, प्रश्न यदि प्रदर्शन बन गया तो वहाँ स्वदर्शन की कोई सम्भावना न रहेगी । महावीर स्वामी और श्रीकृष्ण ने कोई प्रश्न नहीं पूछा; केवल गौतम स्वामी और अर्जुन द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दिया- ऐसा हम सुनते हैं. जानते है; परन्तु सवाल यह है कि इन उत्तरदाता महापुरुषों के मन में भी क्या कोई प्रश्न नहीं उठे थे ? अवश्य उठे होंगे; परन्तु जहाँ से प्रश्न उठा, वहीं से उन्होंने अपना समाधान प्राप्त किया था । मन यदि विषय कषाय से रहित हो-निर्मल हो तो अपनी शंकाओं का निराकरण वह स्वयं प्राप्त कर सकता है । चमडे की आँख से दुनिया दिखती है, मन की आँख से आत्मा । दृष्टा की दृष्टि सूक्ष्मतर होनी चाहिये । वह आत्मा की बात पूछे, शरीर की नहीं। कुरान में अक्षर कितने हैं ? गीता में श्लोकों की संख्या क्या है ? बाइबिल का किस-किस भाषा में अनुवाद हो चुका है ? ये स्थूल प्रश्न हैं; क्योंकि आत्मकल्याण का इनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। इन धर्मग्रन्थों का आशय क्या है ? इनके भीतर भाव क्या है ? किन सिद्धान्तों का ये समर्थन करते हैं ? ऐसे प्रश्न पूछे जा सकते हैं। साधु इनके उत्तर देगा : सानोति स्वपरकार्यांणीति साधुः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( जो अपने और दूसरों के कार्य सिद्ध करे, वही साधु वह स्वयं आत्मकल्याण के मार्गपर चलता है और दूसरों को भी उस पर चलने की प्रेरणा देता है। कभी वह मौन रहकर भी संदेह मिटाता है; इसीलिए उसे “मुनि" कहते हैं। प्रवचन मुँह से ही नहीं होता, मौनसे भी होता है : गुरोस्तु मौनं व्याख्यानम् शिष्यास्तु च्छिन्नसंशयाः ।। (गुरू मौन प्रवचन करते हैं और शिष्यों के संशय समाप्त हो जाते हैं- कट जाते हैं ।) जो सहता है - सहयोग करता है-सहायता करता है, उसे साधु कहते हैं। लोहे का खम्भा डूब जाता है; परन्तु घनों से उसे पीट-पीटकर उसी को नाव का आकार दे दिया जाय तो वही लोहा जल में तैरने लग जाता है। साधु अपने शिष्यों भक्तों अनुयायियों श्रावकों एवं श्राविकाओं के जीवन को प्रवचन-घन से पीट-पीटकर नौका के रूप में परिणत कर देता है; इससे वे संसार सागर में तैरने लग जाते हैं । है ।) साधु इंजीनियर हैं; क्योंकि वे जीवन का निर्माण करते हैं उसे पवित्र बनाते हैंसच्चरित्र बनाते हैं । For Private And Personal Use Only ८३
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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