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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदम, उसने सफलतापूर्वक लक्ष्यवेध करके सब को चकित कर दिया। साधक को भी अपने लक्ष्य (मोक्ष) के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं पडना चाहिये। स्वामी राम कृष्ण परमहंस से एक बैरिस्टर ने पूछा कि आपकी बीमारी का इलाज डॉक्टर कर रहा है! क्या आप अपने योग बल से रोग मुक्त नहीं हो सकते? इस पर मुस्कराते हुए स्वामी जी बोले :- “मैं इतना मूर्ख नहीं हूँ कि घी राख में डालूँ! अपनी वर्षोकी साधना इस नश्वर शरीर के लिए कैसे लूटा हूँ?" इस उत्तर से साधकों को समझ लेना चाहिये कि साधना आत्मकल्याण के लिए होमोक्ष प्राप्ति के लिए हो, मात्र शारीरिक सुख के लिए न हो। चाणक्य ने कहा था : मुक्तिमिच्छसि चेत्तात। विषयान्विषवत्त्ज। हे तात! यदि तू मुक्ति चाहता है तो विषयों को विष के समान समझकर छोड दे। विषय तो विष से भी अधिक घातक हैं : विषस्य विषयाणां हि दृश्यते महदन्तरम्। उपभुक्त विषं हन्ति विषयाः स्मरणादपि। विष और विषयों में बहुत बडा अन्तर है ।खाने पर ही विष मारता है; परन्तु विषय तो स्मरणमात्र से मार डालते हैं। तीली में जब तक दूसरों को जलाने की शक्ति है, तभी तक वह माचिस की डिबिया में बन्द रखी जाती है। जलाने की शक्ति समाप्त होते ही (काम में आते ही) वह मुक्त हो जाती है। उसी प्रकार जब तक मन में विषयासक्ति में राग की आग पैदा करने की शक्ति है, तब तक संसार के बंधन से मुक्ति नहीं मिल सकती। दो पंडित भाँग पीकर मथुरा से वृन्दावन के लिए चाँदनी रात में नाव पर सवार हो कर रवाना हुए। रात-भर नाव खेते रहे; परन्तु सुबह अपने को मथुरा के घाट पर ही पाया; क्योंकि रस्सी खोलना भूल गये थे। इसी प्रकार विषयासकित की रस्सी खोलना भूल गये तो जन्म-जन्मान्तरों तक घोर तपस्याओं का कष्ट सहने पर भी मुक्ति मंजिल प्राप्त नहीं हो सकेगी। यदि राजमहल में प्रवेश करना हो तो पहले द्वारपालकों की अनुमति लेनी पडती है। योग वासिष्ठ में मुक्ति महल के चार द्वारपाल बताये गये हैं : मोक्षद्वारे द्वारपाला श्चत्वार :-परिकीर्तिताः। शमो विचारः सन्तोष-श्चतुर्थः साधुसङगमः।। शम, विचार, सन्तोष और चौथा वैरागी साधुका सत्संग-ये मोक्ष द्वार के चारों द्वारपाल कहे गये हैं। १५८ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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