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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri - मोक्ष मार्ग में बीस कदम . फिर राजा भोज ने खजाने से एक लाख स्वर्णमुद्राएँ भेट करके आदरपूर्वक उस ब्राह्मण को बिदा किया। मुद्राओं की थैली देखते ही घर पर माता और पत्नी के चढे हुए उदास चेहरे खिल उठे। कलह का कारण मिट जाने से वे तीनों पुनःपूर्ववत् प्रेमपूर्वक प्रसन्नता के साथ रहने लगे। किमी ने परोपकारियों की दुर्लभता का वर्णन इन शब्दों में किया है : मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णाः त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः प्रीणयन्तः। परगुणपरमाणून पर्वतीकृत्य नित्यम् निज हवि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः? [मन-वचन-काया में पुण्यामृत से भरे हुए, अपनी उपकार परम्परा के द्वारा त्रिभुवन को प्रसन्न करने वाले तथा दूसरों के छोटे-से गुण को भी पर्वत की तरह मानकर अपने हृदय में नित्य प्रसन्न रहने वाले सन्त कितने हैं ? (बहुत कम)] १३६ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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