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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri - मोक्ष मार्ग में बीस कदम. [नदियाँ स्वयं अपना जल नहीं पीतीं-वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते-मेघ फसलों को नहीं खाते। (इससे प्रमाणित होता है कि) सज्जनों का ऐश्वर्य परोपकार के ही लिए होता है] इसी प्रकार अन्यत्र कहा है : रत्नाकरः किं कुरुते स्वरलैः ? विन्ध्याचल, किं करिभिः करोति? श्रीखण्डनण्डैर्मल्याचलः किम्? परोपकाराय सतां विभूतयः॥ -नीतिप्रदीपः [समुद्र अपने रत्नों से क्या करता है ? विन्ध्याचल अपने हाथियों से क्या करता है ? मलयाचल को चन्दन के टुकड़ों से क्या लाभ ? वह उनसे कौनसा लाभ उठाता है ? कुछ नहीं। सज्जनों का ऐश्वर्य परोपकार के लिए ही होता है] ___ गोचरी के लिए आये धर्मरूचि अनगार को नागश्री ने विष जैसी कई तुम्बीका शाक दे दिया। अपने विशेष अनुभव से गुरुजी ने जान लिया कि शाक खाने योग्य नहीं है। उन्होंने धर्मरूचि को यह आदेश दिया कि इस शाक को बस्ती से बाहर ले जाकर किसी निर्जीव स्थान पर परठ दो। शिष्य ने आदेश का पालन किया। शाक लेकर वह बस्ती से बाहर गया। वहाँ निर्जीव भूमि पर शाक का कुछ अंश डाला तो इधर-उधर से दो-चार चीटियाँ वहाँ आ गई और शाक के प्रभाव से मर गई।धर्मरूचि ने सोचा कि सारा शाक डालने पर तो घी की सुगन्ध से आकर्षित होकर हजारों चींटियाँ यहाँ एकत्र होंगी और अपने प्राण खो देंगी। उन सब की रक्षा के लिए क्यों न मैं ही स्वयं इसे खा लू ? वैसा ही किया भी गया। परोपकार के लिए धर्मरूचि ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया। ___ इंग्लैड के सुप्रसिद्ध लेखक और सुभट सर फिलिप सिडनी एक दिन युद्धक्षेत्र में घायल होकर पड़े थे। उन्हें जोरदार प्यास लगी थी। कुछ सिपाही उनकी प्यास बुझाने के लिए बड़ी मुश्किल से थोड़ा-सा जल प्राप्त करके एक प्याले में लाये थे।ज्यों ही वे जल पीने लगे, त्यों ही उनकी नजर बगल में लेटे एक ऐसे घायल सैनिक पर पड़ी, जो टकटकी लगाकर उनके प्याले की ओर देख रहा था। वह बहुत अधिक प्यासा था। सर फिलिप सिडनी को उसकी दशा पर दया आ गई। उन्होंने सोचा कि मृत्यु तो सभी घायलों की एक प्रकार से निश्चित है-भले ही घंटे भर पहले कोई मरे या घंटे भर बाद । फिर परोपकार क्यों न करूँ? कहने की आवश्यकता नहीं कि उन्होंने तत्काल अपना प्याला उस प्यासे घायल की ओर बढा दिया। सिडनी की तरह उन सबका जीवन धन्य है, जो मृत्यु शय्या पर भी (स्वयं मरणासन्न होते हुए भी) प्राप्त परोपकार का अवसर नहीं चूकते! १३२ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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