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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७. परोपकार परोपकार परायणी महाजनों! प्रभु महावीर ने केवल ज्ञान प्राप्त करने के बाद ग्रामानुग्राम विहार करके स्थान म्यान पर प्रवचन क्यों किये थे? क्या वे कोई सम्प्रदाय चलाना चाहते थे? अपने शिष्यों की माया बढ़ाना चाहते थे? क्या वे प्रसिद्धि पाना चाहते थे ? नहीं, बिल्कुल नहीं। उनके प्रवचनों का एक मात्र उद्देश्य था- परोपकार । अपनी दीर्घकालीन साधना के द्वारा उन्होंने जो कुछ प्राप्त किया था वे उसे प्राणीमात्र के कल्याणार्थ वितरित करना चाहते थे। सूत्रकारों ने लिखा है : सबजगजीवरक्खणदयट्ठयाए भगवया पावयणं सुकहियम्॥ [सभी जगत् के प्राणियों की रक्षा रूप दया (का प्रचार करने) के लिए प्रभुने भली भाँति प्रवचन किया था] हिन्दू शास्त्रों में कहा है कि विष्णु ने परोपकार के ही लिए दस अवतार लिये थे : परोपकृतिकैवल्ये तोलयित्वा जनार्दनः। गुर्वीमुपकृतिं मत्त्वा ह्यवतारान् दशाग्रहीत्॥ ___ -सुभाषितरत्नभाण्डागारम् [परोपकार और कैवल्य को तौल कर विष्णु ने देखा कि परोपकार का पलडा अधिक भारी है (कैवल्य की अपेक्षा परोपकार अधिक महत्त्वपूर्ण है) तो उसे मानकर दस अवतार ग्रहण किये] हम यदि दूसरों पर उपकार करते हैं उन्हें सुख देते हैं, तो वे भी हमें सुख देंगे। सन्त तुलसीदास से पूछिये। वे कहते हैं : ग्रन्थ पन्थ सब जगत के बात बतावत दोय। दुःख दीन्हें दुःख होत है, सुख दीन्हें सुख होय।। परोपकार को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ धर्म बताते हुए कहा है : परहित सरिस धरम नहिं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई। परहित (दूसरों की भलाई) के समान कोई धर्म नहीं है और परपीड़ा (दूसरों को दुःख देने) के समान कोई नीचता (अर्धम) नहीं है। परोपकारी ही जीवित है, शेष सब मुर्दै हैं-ऐसा घोषित करते हुए कहा गया है : आत्मार्थ जीवलोकेस्मिन् को नजीवति मानवः। परं परोपकारार्थम् यो जीवति स जीवति।। -सुभाषितरत्नभाण्डागारम् १२९ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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