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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri - मोक्ष मार्ग में बीस कदम। हुआ बेटो! तुम जीवित रह गये; अन्यथा मैंने जो छाछ तुम्हें पिलाई थी, वह जिस मटके से निकाली थी, उसमें से एक मरा हुआ साँप निकला था!" यह सुनना ही था कि वे चारों युवक मारे भय के बेहोश होकर उस बुढिया के सामने ही सदा के लिए सो गये! सोचने की बात यह है कि यदि साँप जहरीला होता तो वे तत्काल मर जाते! बारह वर्ष की लम्बी अवधि के बाद उन्हें किसने मारा ? केवल भय ने, जो साँप से भी अधिक भयंकर होता है-घातक होता है। सात आदमी थे। वे एक दिन एक साथ धन कमाने के लिए अपने गाँव से चल पड़े। चलते-चलते मार्ग में सूर्य अस्त हो गया। अँधेरे में चलना ख़तरनाक हो सकता था; इसलिए वे सड़क के किनारे ही एक वृक्ष के नीचे ठहर गये। बातें करते-करते जब नींद आने लगी तो सब एक कतार में लेट गये। लेटने के बाद जिस का कतार में पहला नम्बर.था, वह सोचने लगा कि कि जंगल का मामला है। इधर से आकर यदि किसी बिच्छू ने मुझे डंक मार दिया तो मेरी चिल्लाहट से सब जने सावधान होकर पेड़ पर चढ़ जायँगे । मैं अकेला ही मारा जाऊँगा। मैं ऐसी मूर्खता भला क्यों करूं? इस समय सब लेटे हुए हैं-सब को नींद आ रही है। इस अवसर का लाभ उठाकर मैं क्यों न अपना स्थान बदल लूं ? ऐसा सोच के ही वह उठा और कतार के अन्तिम साथी के बाद जाकर लेट गया। अब जिसका दूसरा नम्बर था, उसका पहला नम्बर हो गया। उसके मन में भी ऐसा ही विचार आये, फलतःवह भी उठकर अन्त में लेट गया, फिर क्रमशः तीसरा, चौथा, पाँचवाँ और छठ्ठा आदमी भी,इसी प्रकार अन्त में जाकर लेट गया। यह सिलसिला सुबह तक बराबर चलता रहा। किसी को रातभर नींद नहीं आई और पौ फटते समय (अरुणोदय होने पर) जब उन्होंने आँखे खोली तो अपने को सब ने उसी गांव के किनारे पाया, जहाँ से वे चले थे! धन कमाने, परन्तु भय के कारण पुनःजहाँ थे, वहीं लौट आये। भीरूता के संस्कार संगति से भी आ जाते हैं। एक सिंहनी का बच्चा जंगल में भटक कर सियारों के झुण्ड में पहुँच गया। इससे जवानी आ जाने पर भी वह सियारों की तरह कायर बना रहा। एक दिन कोई सिंह शिकार की खोज में उधर आ निकला। आते ही वह दहाड़ने लगा। गर्जना किये बिना कोई सिंह शिकार नहीं करता। यह उसका स्वभाव है। दहाड़ सुनकर सब सियार इधर-उधर भाग गये। सियारों के बीच पला हुआ वह सिंह भी घबराकर भागने लगा। सिंह ने उसे पकड़ लिया। पकड़ कर एक जलाशय के तट पर ले गया। वहाँ जल में उसे उसका प्रतिबिम्ब दिखाया और कहा कि तू मेरे जैसा ही सिंह है। जैसे मैं दहाड़ कर सब पशुओं को भगा देता हूँ, वैसे तू भी भगा सकता है। सिंह को इससे अपने सिंहत्व का बोध हो गया। उस की कायरता समाप्त हो गई। वह निर्भय बन गया। १२४ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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