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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •धर्म. हमें अपना मुर्दा उठाकर चलने का आदेश नहीं देता। वहाँ दिखावा नहीं, वास्तविकता लाने की बात कहता है। क्रिया के सही भाव लाने को कहता हैं। बड़े मुल्ला ने एक दिन बीबी से कहा :- "आज मेरे लिए भोजन मत बनाना, क्योंकि बादशाह की ओर से नमाज पढ़ाने का बुलावा आया है। शाही नमाज के बाद शाही भोज होगा। बहु मूल्य पकवान मिलेंगे। भरपेट खाऊँगा; इसीलिए घर से भूखा भी चला जाऊँगा तो कोई बात नहीं।" बीबी बोली :- "ठीक है। जैसी आपकी मर्जी हो, वैसा किजीये। नहीं बनाऊँगी आपके लिए भोजन।" मुल्ला भूखे पेट नमाज पढ़ाने लगे। पढ़ाते समय उनका ध्यान सबको खुश करने की ओर था, खुदा की ओर नहीं। नमाज के बाद शाही भोज शुरू हुआ। तरह-तरह की स्वादिष्ट चीजें मेज पर सजी हुई थी। आस-पास लगी कुर्सियों पर सब लोग खाने बैठे; किन्तु एक-एक दो-दो कौर लेकर सब उठ गये मुल्ला ने मन मे सोचा कि जब ये लोग उठ गये तो मुझे भी उठना पड़ेगा; अन्यथा ये लोग समझेंगे कि मुल्ला में शिष्टता ही नहीं है न जाने कितने दिनों का भूखा होगा...आदि। इस प्रकार इच्छा न होते हुए भी सब के साथ मुल्ला को उठना पड़ा। वहाँ से छूटते ही भागता हुआ वह घर आया। बीबी से बोला :- “पेट में चूहे दौड़ रहे हैं; जल्दी से खाना पकाकर परोस!" बीबी :- "क्या शाही भोज से भी पेट न भरा?'' मियाँ ने सारा किस्सा सुनाया कि किस प्रकार इच्छा न होते हुए भी उठकर आना पड़ा। बीबी समझदार थी। वह बोली :- “एक बार फिर से नमाज पढ़ो; क्योंकि जो नमाज तुमने वहाँ पढ़ी, वह शाही मेहमानों को खुश करने के लिए थी-दिखावे भरके लिए थी, खुदा के लिए नहीं। वह खुदा तक नहीं पहुँच पायी। अब ऐसी नमाज पढ़ो कि वह खुदा के लिए हो। तब तक मैं भी तुम्हारे लिए भोजन बना देती हूँ।" कहने का आशय यह है कि यदि दिखावे के लिए आप धर्म करेंगे तो वह आपकी आत्मा तक नहीं पहुंच सकेगा। ___ जिसकी आत्मा सरल होती है, वह धर्म में प्रविष्ट हो जाती है। सिलाई करने से पहले सूई में धागा पिरोते हैं। जब तक धागे में सरलता रहती है, तब तक वह सूई के छेद में प्रविष्ट होता रहता है, किन्तु ज्यों ही उसमे गांठ आ जाती है, अटक जाता है। आत्मा में भी यदि रागद्वेष की ग्रन्थियाँ पड़ी हों तो वह अटक जाती है। धर्म में उसका प्रवेश नहीं हो पाता। धर्म सद्गुणों का स्त्रोत है- उद्गम है। उस में कवालिटी ही देखी जाती है, क्वांटिटी नहीं। ११९ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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