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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •धर्म. अहिंसक ज्ञानियों का प्रमुख उपदेश है : ___एवं खु णाणिणो सारम् जं न हिंसइ किंचणम्॥ (यही ज्ञानियों के ज्ञान का सारांश है कि वे किसी की हिंसा नहीं करते) क्योंकि हिंसा, हत्या या वध अधर्म है- त्याज्य है : __ अधर्मः प्राणिनां वधः॥ (प्राणियों की हत्या अधर्म है) यही कारण है कि हिंसारूप अधर्म से धर्मात्मा सदा दूर रहते हैं। धर्म का दूसरा लक्षण है-संयम | कार कितनी भी सुन्दर हो-मूल्यवान हो; परन्तु यदि उस में ब्रेक न हो तो बैठने वाले सभी सुखी नहीं रह सकते; क्योंकि उससे उन्हें दुर्घटना का सदा भय बना रहेगा। संयम भी जीवन में ब्रेक का काम करता है। उससे जीवन निर्भय और निश्चिन्त बनता है। यदि किनारे टूट जायँ तो नदी का जल गाँव को बहा ले जायगा। और चारों और तबाही मचा देगा जीवनरूपी जल के लिए संयम किनारों की तरह है। संयम नष्ट होने पर जीवन का दुरुपयोग होगा-आत्मा का पतन । शरीर संयम के लिए ही धारण किया जाता है : संजम हेऊ देहो धारिज्जइ सो कओ उ तदभावे।। (संयम के लिए ही शरीर धारण किया जाता है। संयम के अभाव में शरीर कहाँ ?) जिस प्रकार ब्रेक के अभाव में कार सुरक्षित नहीं रहती, उसी प्रकार संयम के अभाव में शरीर भी सुरक्षित नहीं रह सकता। इतिहासकार ने निरन्तर परिश्रम करके बीस वर्षों में ग्रीस देश का सुविशाल इतिहास ग्रन्थ लिखा था; परन्तु उस पूरे ग्रन्थ का सारांश यही है कि विलास से ग्रीस का पतन हुआ तथा सादगी और संयम से उस का उत्थान । धर्म का त्रीसरा लक्षण है- तप। शारीरिक और मानसिक कष्टों, संकटों एवं उपसर्गो को शान्तिपूर्वक सहना तप है। इस से तेजस्विता प्रकट होती है : तपस्तनोति तेजांसि॥ (तप से तेज का विस्तार होता है) इस प्रकार अहिंसा, संयम और तप रूप धर्म को अपनाने से दुर्गति रूकती है : दुर्गतौ प्रपतज्जन्तूधारणाद् धर्म उच्यते॥ (दुर्गति में गिरनेवाले जीव का उद्धार करने वाले को "धर्म" कहते हैं।) संसार सागर में डूबने वाले जीवों के लिए धर्म द्विप के समान रक्षक है : For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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