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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri - मोक्ष मार्ग में बीस कदम । हुई।कुटुम्बियों को जब उसने उपलब्धि की बात सुनाई तो वे भी उसकी हँसी उड़ाने लगे। स्वयं भी उसे बहुत दुःख हुआ।इतने महीनों की सेवा व्यर्थ गई। योगी ने पारस पत्थर के बदले कोई साधारण पत्थर उसे पकड़ा दिया था-ऐसा वह समझा। वह दूसरे ही दिन रोता हुआ उस स्थान पर पहुंचा, जहाँ योगी समाधिस्थ बैठे थे । समाधि खुलने पर योगी ने अपने भक्त की आँखों मे आँसू देखकर पूछा :- “कहो भाई! फिर कौनसा दुःख आ गया? क्या पारस पत्थर से भी दरिद्रता दूर नहीं हुई ? या वह पत्थर किसी ने चुरा लिया है ?" भक्त :- "योगीराज! आपने जो पारस दिया था, वह पत्थर ही साबित हुआ। पत्थर भला लोहे को सोना कैसे बना सकता है ?" योगी :- “नहीं भाई! मैं ने तो तुम्हें पारस ही दिया था। तुमने प्रयोग ही गलत किया होगा।" भक्त :- "प्रयोग में क्या गलती हो सकती है ? जब लोहे को छूने मात्र से उसे सोने में परिवर्तित करने की शक्ति पारस में है, तब दिन-भर लोहे की कोठी में उसे डालकर रक्खा गया, फिर भी वह कोठी सोने में क्यों रूपान्तरित न हो सकी ? आप स्वयंचल कर देख लीजिये।" योगी ने घर जाकर देखा। कोठी पुरानी थी। उसमें धूल बैठी थी। अनेक जाले मकड़ियों के बुने हुए उसमें दिखाई दे रहे थे। पारस पत्थर उन जालों के बीच बिराजमान था! कैसे प्रयोग सफल होता? योगी ने कोठी बिल्कुल साफ करवाई और फिर पारस का उस पर प्रभाव दिखाया। __साधुओं का प्रवचन भी पारस पत्थर के समान ही होता है; परन्तु जब तक आप अपने मन की सफाई नहीं कर लेते, तब तक उसका कोई प्रभाव नहीं दिखाई देगा। प्रवचन का प्रभाव देखना हो तो अपने मन पर लगे विषय-कषाय के मकड़ी के जालों को पहले हटाना होगाउसमें भरे विकार भी धूल का पहले त्याग करना होगा। ___ आप जैन साधुओं की उपासना करें- सत्संग करें तो वे आप से क्या कहेंगे? वे त्यागी है; इसलिए हमेशा किसी-न-किसी वस्तु के त्याग की प्रेरणा करेंगे। बाह्मत्याग से ही वे प्रारंभ करेंगे, जिससे त्याग का अभ्यास हो जाय। एक साधु ने किसी श्रावक से लौकी का त्याग करा दिया। घर आकर उसने पत्नी से कहा कि साधुजी की प्रेरणा से मैं ने लौकी का त्याग किया है; इसलिए कोई दूसरी सब्जी बनाना । पत्नी ने सोचा कि इन साधुओं के चक्कर में जो आ जाता हैं, वह लौकी का त्याग करतेकरते किसी दिन परिवार का भी त्याग करके चला जाता है; इसलिए त्याग की यह बीमारी पनपने देना ठीक नहीं।वह गुस्से में आकर बोली :- “क्यों ? मैं तो लौकी की ही सब्जी बनाऊँगी। मेरे घर में ऐसी बातें नहीं चलेगी। खाना हो तो खाइये; अन्यथा...." १०२ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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